श्री मुनिसुव्रत नाथ स्तोत्र



श्री मुनिसुव्रतनाथ स्तोत्र

 

नरेन्द्रं सुरेंद्रम करें पूजा तेरी, झुका सिर करूँ अर्चना मैं घनेरी।

छवि वीतरागी है त्यागी बनाये, मनोहारी मुद्रा है मन को लुभाये।।

 

मुनिनाथ हो तुम सुव्रत को दिलाते, सदा संकटो को तुम्ही तो हटाते।

दुखियों के दुःख को सदा हरने वाला, सुखिया भी सुख में जपे तेरी माला।।

 

है छाया अंधेरा न सूझे किनारा, बड़ी दूर मंजिल,दो प्रभु जी सहारा। 

जपू तेरी माला,पुकारूँ मैं तुझको, दुःखो में फंसा हूँ संभालो जी मुझको।।

 

मेरी क्रोध अग्नि, क्षमा जल को डालो, अभिमान पत्थर को आपहि निकालो।

माया की छाया,करो दूर मेरी, हरो लोभ मेरा,करो नाहिं देरी।।

 

करें भक्ति तेरी तो बीमारी जावे, कभी भूत-प्रेत न उनको सतावे। 

तेरी शक्ति से शक्ति तन-मन की बढ़ती, करें शांतिधारा,ना विपदाये चढ़ती।।

 

खारा था जल तूने मीठा कराया, सूनी थी गोदी तो पुत्र को पाया।

नहीं सिर पे छाया है,छाया कराई, मनोकामना पूर्ण तूने कराई।।

 

तुम्ही मां पितु हो,तुम्ही मित्र मेरे, हो भाग्य विधाता,शरण में हूँ तेरे। 

तुम्ही रक्षा करना,तुम्ही हो सहारे, भंवर में है नैया,करो तुम किनारे।।

 

श्रद्धा के पुष्पों से जो तुमको घ्यावें, महासंपदा का तू मालिक बनावे।

सुबह शाम गीतो की माला बनाऊँ, तेरी भक्ति गा के मैं तुझको सुनाऊँ।।

 

दोहा

द्वारे भक्त है आ खड़ा, शरण में ले लो देव।

मुनिसुव्रत भगवान की, नित प्रति करतें सेव।।