Posted on 23-May-2020 10:12 PM
(तर्ज :- ऐ मेरे दिले नादां)
अशरीरी-सिद्ध भगवान, आदर्श तुम्हीं मेरे
अविरुद्ध शुद्ध चिद्घन, उत्कर्ष तुम्हीं मेरे ॥टेक॥
सम्यक्त्व सुदर्शन ज्ञान, अगुरुलघु अवगाहन
सूक्ष्मत्व वीर्य गुणखान, निर्बाधित सुखवेदन ॥
हे गुण! अनन्त के धाम, वन्दन अगणित मेरे ॥१॥
रागादि रहित निर्मल, जन्मादि रहित अविकल
कुल गोत्र रहित निष्कुल, मायादि रहित निश्छल ॥
रहते निज में निश्चल, निष्कर्म साध्य मेरे ॥२॥
रागादि रहित उपयोग, ज्ञायक प्रतिभासी हो
स्वाश्रित शाश्वत-सुख भोग, शुद्धात्म-विलासी हो ॥
हे स्वयं सिद्ध भगवान, तुम साध्य बनो मेरे ॥३॥
भविजन तुम-सम निज-रूप, ध्याकर तुम-सम होते
चैतन्य पिण्ड शिव-भूप, होकर सब दुख खोते ॥
चैतन्यराज सुखखान, दुख दूर करो मेरे ॥४॥
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