है सीमंधर भगवान शरण ली तेरी...



हे ! सीमंधर भगवान शरण ली तेरी,

बस ज्ञाता दृष्टा रहे परिणति मेरी ||टेक||

 

निज को बिन जाने नाथ फिरा भव वन में |

सुख की आशा से झपटा उन विषयन में ||

ज्यों कफ में मक्खी बैठ पंख लिपटावे,

तब तड़फ-तड़फ दुःख में ही प्राण गमावे ||

त्यों इन विषयन में मिली, दुखद भवफेरी ||१|| (बस ज्ञाता...)

 

मिथ्यात्व राग वश दुखित रहा प्रतिपल ही,

अरु कर्म बंध भी रुक न सका पल भर भी |

सौभाग्य आज हे प्रभो तुम्हें लख पाया,

दुःख से मुक्ति का मार्ग आज मैं पाया ||

हो गयी प्रतीति नहीं मुक्ति में देरी ||२||(बस ज्ञाता...)

 

सार्थक सीमंधर नाम आपका स्वामी |

सीमित निज में हो गये आप विश्रामी ||

करते दर्शन कर भव सीमित भवि प्राणी |

फिर आवागमन विमुक्त बने शिवगामी ||

चिरतृप्ति प्रदायक शांति छवि प्रभु तेरी ||३||(बस ज्ञाता...)

 

आत्माश्रय का फल आज प्रभो लख पाया |

निज में रमने का भाव मुझे उमगाया ||

निज वैभव सन्मुख तुच्छ सभी कुछ भासा |

दर्शन से पलट गया परिणति का पासा ||

चैतन्य छवि अंतर में आज उकेरी ||४||(बस ज्ञाता...)

 

हे ! ज्ञायक के ज्ञायक चैतन्य विहारी |

मैं भाव वंदना करूँ परम उपकारी ||

अपनी सीमा में रहूँ यही वर पाऊँ |

प्रभु भेद भक्ति तज निज अभेद को ध्याऊँ ||

अब अंतर में ही दिखे मुझे सुख ढेरी ||५||(बस ज्ञाता...)