Posted on 09-Sep-2023 08:34 PM
जिनधर्म से है प्रेम तो बस भावना ये भाईये ।
देह जाये तो भले जिनधर्म रहना चाहिये ।।
जिनमार्ग की हो प्रभावना जिनध्वजा यूं लहराईये ।
देह जाये तो भले जिनधर्म रहना चाहिये ।।
वीतरागी अहो जिनेश्वर धन्य वे मुनिराज हैं ।
निरपेक्ष सहज स्वरूप दर्शाते करें उपकार हैं ।।
मंगलमयी प्रभु शरण पाके जगोत्तम हो जाइये ।
देह जाये तो भले जिनधर्म रहना चाहिये ।।
जिनाज्ञा के भंग होने का हदय में भय सदा ।
ऐसे मुमुक्षु नहीं करते मार्ग उल्लंघन कदा ।।
आत्महित का लक्ष्य ले शिवपंथ में बढ़ जाईये ।
देह जाये तो भले जिनधर्म रहना चाहिये ।।
सत्य है शिवमयी सत्पथ बनो इसके पक्षधर ।
मोह अच्छे का बुरा है जान लो है विज्ञवर ।।
मिथ्यात्व बैरी अंश भी है बुरा जान नशाईये ।
देह जाये तो भले जिनधर्म रहना चाहिये ।।
अनादि निधन वस्तु सब सीमा में करती परिणमन ।
कर्ता न धर्ता कोई है, सब द्रव्य अपने में मगन ।।
कर्त्तत्व भार उतारकर निर्भार अब हो जाईये ।
देह जाये तो भले जिनधर्म रहना चाहिये।।
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