Posted on 02-Oct-2020 12:18 PM
भरत एवं ऐरावत क्षेत्र के आर्यखण्डों में अवसर्पिणी एवं उत्सर्पिणी काल के दो विभाग होते हैं। जिसमें मनुष्यों एवं तिर्यञ्चों की आयु, शरीर की ऊँचाई, बुद्धि, वैभव आदि घटते जाते हैं, वह अवसर्पिणी काल कहलाता है एवं जिसमें आयु, शरीर की ऊँचाई, बुद्धि, वैभव आदि बढ़ते जाते हैं वह उत्सर्पिणी काल कहलाता है।
एक कल्पकाल 20 कोड़ाकोड़ी सागर का होता है। जिसमें 10 कोड़ाकोड़ी सागर का अवसर्पिणी काल एवं 10 कोड़ाकोड़ी सागर का उत्सर्पिणी काल होता है। दोनों मिलाकर एक कल्पकाल कहलाता है।
अवसर्पिणी एवं उत्सर्पिणी काल के भेद - सुषमा-सुषमा काल, सुषमा काल, सुषमा-दुःषमा काल, दुःषमा-सुषमा काल, दुःषमा काल एवं दुःषमा-दुःषमा काल। ये छः भेद अवसर्पिणी काल के हैं। इससे विपरीत उत्सर्पिणी काल के भी छः भेद हैं। दुःषमा- दुःषमा काल, दुःषमा काल, दुःषमा-सुषमा काल, सुषमा-दुःषमा काल, सुषमा काल एवं सुषमा-सुषमा काल।
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