Posted on 10-Mar-2021 08:08 PM
नहीं है जिसमें कोई तनाव, नहीं है जिसमें कोई विकल्प।
नहीं है जिसमें कोई दोष, नहीं है कोई भी आक्रोश।।
सहजता जीवन का उल्लास, सहजता निर्विकल्प आनंद।
सहजता स्वास और उस्वास, सहजता ही है परमानन्द।। १।।
अरे रे पर को पर स्वीकार, न उनमें कुछ करने का भाव।
और अपनी पर्यायों को, सुनिश्चित क्रमनियमित स्वीकार।।
न उनमें फेरफार का भाव, एकदम सरल सहज स्वीकार।
न इसमें हर्षाहर्ष विभाव, सहजता जीवन का आधार।। २।।
सहजता जीवन का आधार, वस्तु का सम्यक् रूप निहार।
जगत का सहज परिणमन देख, होय बस उसे सहज स्वीकार।।
सहजता जीवन का एक लक्ष्य, सहज जीवन ही हो स्वीकार।
और जीवन का परम पवित्र, ज्ञान-दर्शन का हो व्यापार।। ३1
जगत का कोई भी परद्रव्य, नहीं होता है इष्ट-अनिष्ट।
स्वकाल में उदित सहज परिणमन, अरे होता है सदा विशिष्ट।।
अरे वह भी होता है अचल, नहीं होता उसमें कुछ बदल।
सभी सम्यग्ज्ञानी जन को, अरे स्वीकृत होता है सहज।। ४।।
जगत का सभी परिणमन अरे, पूर्णतः पूर्व सुनिश्चित है।
नहीं करना है कुछ भी हमें, क्योंकि वह पूर्ण व्यवस्थित है।।
अरे इस परम सत्य की सहज, स्वीकृति सहज सहजता है।
यही है दर्शन-ज्ञान-चरित्र, ध्यान की सहज अवस्था है।।५।।
ध्यान की सहज अवस्था है, ज्ञान की गौरव-गरिमा है।
अरे रे जीवन का आनन्द, आत्म की अद्भुत महिमा है।
सहजता सहज धर्म का मर्म, धर्म सरिता की तरल तरंग।
संत साधर्मी का सत्संग, धर्मकाया का उत्तम अंग।। ६।।
सभी के मन में सहज उमंग, और पुलकित हैं सारे अंग।
बना है अद्भुत आत्मप्रसंग, और मानस में विपुल तरंग।।
खिले हैं सबके सारे अंग, आत्म-अनुभव की तरल तरंग।
जगत में सहज सहजता अरे, समाई हैं सबमें सर्वांग ।। ७।।
सहजता सब द्रव्यों का धर्म, सहजता का न कहीं अभाव।
सहजता ना छोड़े कोई द्रव्य, सभी के अपने-अपने भाव।।
सभी स्वाधीन सहज परिणमें, सहजता जीवन का आधार।
सहजता की सामर्थ्य अपार, अरे महिमा है अपरंपार।। ८।
सहजता सब द्रव्यों का भाव, सहजता सबका सहज स्वभाव।
किसी का हम पर कोई न भार, सभी हैं अपने जिम्मेवार।।
स्वयं के परिवर्तन का भार, नहीं है हम पर हम निर्भार।
सहजता का सम्यक् स्वीकार, करे हम सबका बेड़ा पार।। ९ ।
करे हम सबका बेड़ा पार, यही है मुक्तिमग का द्वार।
यही है अद्भुत आतम शान्ति, यही है परमानन्द अपार।।
यही है सम्यग्दर्शन-ज्ञान, यही है निश्चय धर्मद् ध्यान।
यही है मन-वच-काय निरोध, यही है सहज समाधि योग।।१०।।
सहज जीवन है सहज समाधि, न जिसमें आधी-व्याधि-उपाधि।
समाधि है सुखमय जीवन, मरण का उससे क्या सम्बन्ध।।
समाधिमय जीवन में देहान्त, सुनिश्चित क्रमनियमित अनुसार ।
यदि हो जावे तो उसको कहा जाता है समाधीमरण।। ११।।
सहज समभावमयी जीवन समाधि का है सम्यक् रूप।
मोह अर क्षोभ रहित समभाव सहज ही अद्भुत और अनूप।।
समाधि धारण करके भाई अरे जीवन का करें सुधार।
मरण तो एक समय का कार्य मरण का कैसे होय सुधार ।। १२।।
(रोला)
अरे सहजता जीवन का सर्वांग सत्य है।
सबका सब कुछ निश्चित है - यह महासत्य है।।
सबका सब कुछ सहज स्वयं से ही होता है।
अधिक कहें क्या सब स्वकाल में ही होता है।। १३।।
(कुण्डलिया)
सभी सहज ही परिणमें अपने क्रम अनुसार।
परिवर्तन संभव नहीं करो सहज स्वीकार।।
करो सहज स्वीकार चित्त को न भरमावो।
सहज भाव से अपने आतम में आ जावो।।
अपने को तो अपना आतम परम शरण है।
मुक्तिमार्ग में श्रेष्ठकार्य आतम-अनुभव है।। १४।।
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