Posted on 21-Oct-2020 04:07 PM
सीधे सीझे शीत हैं, शरीर बिन जीवन्त।
सिद्धों को मम नमन हो, सिद्ध बनूँ श्रीमन्त ॥1॥
वचन-सिद्धि हो नियम से, वचन-शुद्धि पल जाय।
ऋद्धि-सिद्धि-परसिद्धियाँ, अनायास फल जायें ॥2॥
प्रभु दिखते तब और ना, और समय संसार।
रवि दिखता तो एक ही, चन्द्र साथ परिवार ॥3॥
भांति भांति की भ्रांतियां, तरह तरह की चाल।
नाना नारद-नीतियाँ ले जातीं पाताल ॥4॥
मानी में क्षमता कहाँ, मिला सकें गुणमेल।
पानी में क्षमता कहाँ, मिला सके घृत तेल ॥5॥
स्वर्गों में ना भेजते, पटके ना पाताल।
हम तुम सबको जानते, प्रभु तो जाननहार ॥6॥
चमक दमक की ओर तू, मत जा नयना मान।
दुर्लभ जिनवर रूप का, निशि दिन करना पान ॥7॥
चिन्तन से चिन्ता मिटे, मिटे मनो मल मार।
प्रसाद मानस में भरे, उभरें भले विचार ॥8॥
रही सम्पदा आपदा, प्रभु से हमें बचाय।
रही आपदा सम्पदा, प्रभु से हमें रचाये ॥9॥
कदुक मधुर गुरु वचन भी, भविक चित्त हुलसाय
तरुण अरुण की किरण भी, सहज कमल विकसाय ॥10॥
वेग बढ़े इस बुद्धि में, नहीं बढ़े आवेग।
कष्ट-दायिनी बुद्धि है, जिसमें ना संवेग ॥11॥
शास्त्र पठन ना, गुणन से निज में हम खो जाय।
कटि पर ना पर अंक में, माँ के शिशु सो जाय ॥12॥
सुधी पहनता वस्त्र को, दोष छुपाने भ्रात।
किन्तु पहिन यदि मद करे, लज्जा की है बात ॥13॥
आगम का संगम हुआ, महापुण्य का योग।
आगम हृदयंगम तभी, निश्छल हो उपयोग ॥14॥
विवेक हो ये एक से, जीते जीव अनेक।
अनेक दीपक जल रहे, प्रकाश देखो एक ॥15॥
खण्डन-मण्डन में लगा, निज का ना ले स्वाद।
फूल महकता नीम का, किन्तु कटुक हो स्वाद ॥16॥
नीर-नीर को छोड़कर, क्षीर-क्षीर का पान।
हंसा करता भविक भी, गुण लेता गुणगान ॥17॥
चिन्तन मन्थन मनन जो, आगम के अनुसार।
तथा निरन्तर मौन भी, समता बिन निस्सार ॥18॥
पके पत्र फल डाल पर, टिक ना सकते देर।
मुमुक्षु क्यों? ना निकलता, घर से देर सबेर ॥19॥
तव-मम-तव-मम कब मिटे, तरतमता का नाश।
अन्धकार गहरा रहा सूर्योदय ना पास ॥20॥
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