Posted on 07-May-2020 07:42 PM
अनेकांतवाद का अर्थ
जब वस्तु के पूर्ण स्वरूप को समझने के लिए अनेक दृष्टिकोण का उपयोग कर के वस्तु का स्वीकार किया जाए तो उस शैली को अनेकांतवाद कहते हैं। वस्तु का स्वरूप इतना विस्तृत व गहन है कि किसी एक वाक्य में उसे सम्पूर्ण रूप से समझाया नहीं जा सकता। इसलिए जैन धर्म के अंतर्गत सभी दृष्टिकोणों को न्यायपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है। अनेकांतवाद का संधि विच्छेद करने से उसका अर्थ सहज ही स्पष्ट हो जाता है। अन+एक+अंत+वाद यानि अंत को समझाने के लिए कोई एक वाद समर्थ नहीं है। अनेकांतवाद की प्ररूपणा का काल अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर के समय से माना जाता है।
अनेकांतवाद का सिद्धांत
अनेकांतवाद जैन दर्शन का सिद्धांत है। इसका अभिप्राय यह है कि संसार की प्रत्येक वस्तु विरुद्ध प्रतीत होने वाले अनंत कर्मों के भिन्न-भिन्न आशय हैं। वस्तु के संबंध में विभिन्न दर्शनों की जो विभिन्न मान्यताएँ हैं, अपेक्षाभेद एवं दृष्टिभेद से वे सब सत्य हैं। उनमें से किसी एक को यथार्थ मानना और अन्यों को अयथार्थ मानना उचित नहीं है। वस्तु को कुछ परिमित रूपों में ही देखना नयदृष्टि है, प्रमाणदृष्टि नहीं। नयदृष्टि का अर्थ है एकांकी दृष्टि और प्रमाणदृष्टि का सर्वांगीण दृष्टि।
इस जगत् में अनेक वस्तुएँ हैं और उनके अनेक धर्म (गुण-तत्व) हैं। जैन दर्शन मानता है कि मनुष्यों, पशुओं, पक्षियों, पेड़ और पौधों में ही चेतना या जीव नहीं होते, बल्कि धातुओं और पत्थरों जैसे दृश्यमान-जड़ पदार्थ भी जीव सकन्ध समान होता हैं। पुदगलाणु भी अनेक और अनंत हैं, जिनके संघात बनते-बिगड़ते रहते हैं।
अनेकांतवाद कहता है कि वस्तु के अनेक गुण-धर्म होते हैं। वस्तु की पर्याएं बदलती रहती है। इसका मतलब कि पदार्थ उत्पन्न और विनष्ट होता रहता है, परिवर्तनशील, आकस्मिक और अनित्य है। अत: पदार्थ या द्रव्य का लक्षण है- बनना, बिगड़ना और फिर बन जाना। यही अनेकांतवाद का सार है।
इसे इस तरह से समझना चाहिए कि हर वस्तु को मुख्य और गौण, दो भागों में बाँटें तो एक दृष्टि से एक चीज सत् मानी जा सकती है, दूसरी दृष्टि से असत्। अनेकांत में समस्त विरोधों का समन्वय हो जाता है। अत: सत्य को अनेक दृष्टिकोण से देखा जा सकता है।
अनेकांतवाद को प्रदर्शित करती यह कहानी
अनेकान्तवाद को एक हाथी और पांच अंधों की कहानी से बहुत ही सरल तरीके से समझा जा सकता है। पांच अंधे एक हाथी को छूते हैं और उसके बाद अपने-अपने अनुभव को बताते हैं।
एक अंधा हाथी की पूंछ पकड़ता है तो उसे लगता है कि यह रस्सी जैसी कोई चीज है, इसी तरह दूसरा अंधा व्यक्ति हाथी की सूंड़ पकड़ता है उसे लगता है कि यह कोई सांप है। इसी तरह तीसरे ने हाथी का पांव पकड़ा और कहा कि यह खंभे जैसी कोई चीज है, किसी ने हाथी के कान पकड़े तो उसने कहा कि यह कोई सूप जैसी चीज है, सबकी अपनी अपनी व्याख्याएं।
जब सब एक साथ आए तो बड़ा बवाल मचा। सबने सच को महसूस किया था पर पूर्ण सत्य को नहीं, एक ही वस्तु में कई गुण होते हैं पर हर इंसान के अपने दृष्ठिकोण की वजह से उसे वस्तु के कुछ गुण गौण तो कुछ प्रमुखता से दिखाई देते हैं। यही अनेकान्तवाद का सार है।
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