Posted on 03-Jun-2020 03:21 PM
णमोकार मंत्र
णमो अरिहंताणं,
णमो सिद्धाणं,
णमो आइरियाणं,
णमो उवज्झायाणं,
णमो लोए सव्व साहूणं !
एसोपंचणमोक्कारो सव्वपावप्पणासणो
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढ़मं हवई मंगलं !!!
परिभाषा
णमो अरिहंताणं
नष्ट हो गए हैं 4 घातिया कर्म जिनके, जो अनंतज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य के साथ है !
शुभ परम औदारिक शरीर में स्थित हैं, तथा जो शुद्ध हैं, ऐसे अरिहंत भगवान् को मै शीश झुका कर नमस्कार करता हूँ|
कल्पना करें कि कैसे अरिहंत भगवान् का समवसरण लगता होगा, उनकी वाणी खिरती होगी ...
कैसे उन्होंने अपना संसारी सुख, वैभव और राज-पाट से विमोह किया और अपने निज के हित में लीन हुए| क्यूँ मुझमे वो विराग भाव नहीं उमड़ता ?
उन विशेष आत्मनों को मैं उनके गुणों के लिए वंदता हूँ और स्वयं भी राग-द्वेष,काम-क्रोध इत्यादि से विरागी होने की भावना भाता हूँ !
णमो सिद्धाणं
सिद्धों को नमस्कार हो ! जिन्होंने अपने साध्य को सिद्ध कर लिए है ! ज्ञानवर्णादि 8 कर्मो को नाश कर दिया है, और जो अपने ज्ञानानंद स्वरुप में, निज-स्वरुप में सदा अवस्थित रहते हैं ! जो ज्ञान-शरीरी हैं, वो सिद्ध हैं|
जो द्रव्य कर्म, भाव-कर्म और नो-कर्म रुपी मल से रहित हैं|
जिन्होने गृहस्थ अवस्था का परित्याग कर मुनि होकर तप द्वारा घातिया-कर्म (4) रूप मल का नाश कर अनंत चतुष्ठ्य रूप भाव को प्राप्त किया है, और उसके बाद योग निरोधकर अघातिया-कर्म(4) का नाश कर, परम-औदारिक़ शरीर को छोड कर जो, लोक के अग्र-भाग मे विराजमान हैं, मैं शीश झुका कर उन निरंजन सिद्ध और शुद्ध आत्माओं को नमन करता हू|
णमो आइरियाणं
आचार्यों को नमस्कार हो ! जो दर्शन, ज्ञान, चरित्र, तप और वीर्य इन 5 आचारो का स्वयं आचरण करते हैं और दूसरे साधुओं से भी कराते हैं, सो आचार्य भगवान हैं|
36 मूल-गुण का सावधानी से पालन करते हैं, जो 7 प्रकार के भय से रहित हैं|
जो मुनि रत्नत्रय की प्रधानता के कारण संघ के नायक हैं, मेरु पर्वत की तरह निष्कंप हैं, शूरवीर हैं, शेर के समान निर्भीक हैं, श्रेष्ठ हैं, आकाश के समान निरलेश हैं, ऐसे आचार्य भगवान को मैं शीश झुका कर नमस्कार करता हूँ|
णमो उवज्झायाणं
उपाध्यायों को नमस्कार हो !
जो साधु 14-विद्यास्थान रूपी समुद्र मे प्रवेश करके परमागम का अभ्यास करके मोक्षमार्ग मे स्थित हैं, तथा स्वयं अध्ययन करते हैं और मुनियों को उपदेश देते हैं, सो मुनीश्वर उपाध्याय भगवान हैं| ऐसी महान ज्ञानी जनों को मैं शीश झुका नमन करता हूँ|
णमो लोए सव्व साहूणं
ढाई द्वीप के उन सभी साधुओं को नमस्कार हो, जो अपनी शुद्ध आत्मा के स्वरूप की साधना करते हैं|
स्मरण कीजिए, "हो अर्ध-निशा का सन्नाटा वन मे वनचारी चरते हो, तब शांत निराकुल मानस तुम, तत्वों का चिंतवन करते हो" ... कितने विशुद्ध परिणामी होंगे ऐसे मुनीराज|
ऐसे मुनीराज को जो, अपने मूल-गुण का पालन करते हुए मोक्ष-मार्ग मे लीन हैं, मैं उन्हे शीश झुका कर नमन करता हूँ !
णमोकार महामंत्र से सम्बंधित एक तथ्य :-
यह मंत्र "प्राकृत भाषा" में है और इसकी रचना "आर्या छंद" में है !
इस मंत्र के अंतिम पद में "लोए" और "सव्व" शब्दों का उपयोग हुआ है, ये शब्द "अन्त्यदीपक" हैं !
अन्त्य का अर्थ अंत में और दीपक का अर्थ प्रकाशित करना होता है !
जिस प्रकार दीपक को सब वस्तुओं के अंत में रखने के बाद भी वह उससे आगे रखी हुई चीज़ों को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार यहाँ इन दो शब्दों को प्रत्येक पद के साथ जोड़ लेना चाहिए !
अर्थात
लोक में सब अर्हतों को नमस्कार हो !
लोक में सब सिद्धों को नमस्कार हो !
लोक में सब आचार्यों को नमस्कार हो !
लोक में सब उपाध्यायों को नमस्कार हो !
लोक में सब साधुओं को नमस्कार हो !
इस परम-मंगलकारी मंत्र को किसी भी अवस्था में कहीं भी पढ़ा जा सकता है|
-: णमोकार मंत्र की महिमा :-
एसोपंचणमोक्कारो, सव्वपावप्पणासणो
मंगला णं च सव्वेसिं, पढमं हवई मंगलं !!
यह पाँच नमस्कार मंत्र , सब पापों का नाश करने वाला और सब मंगलो मे पहला मंगल है|
णमोकार महामंत्र, प्राकृत भाषा मे लिखा गया है|
णमोकार महामंत्र के कोई बनाने वाले/लिखने वाले/रचयिता नही हैं, यह अनादि-निधन मंत्र है|
णमोकार महामंत्र को सबसे पहले आचार्यश्री भूतबली और पुष्पदंत जी महाराज ने अपने महान ग्रंथराज "षटखंडागम" मे लिपीबद्ध किया|
णमोकार मंत्र को महामंत्र इसलिए कहा गया है, क्योकि सामान्य मंत्र सांसारिक पदार्थों की सिद्धि मे सहायक होते हैं परंतु णमोकार महामंत्र जपने से ये तो प्राप्त होते ही हैं, साथ ही परमार्थ पद प्राप्त करने मे भी ये मंत्र सहायक है
आचार्य नेमीचंद सिद्धान्तचक्रवर्ती जी महाराज ने अपने ग्रंथ द्रव्य संग्रह जी मे भी लिखा है की, पणतीस सोल छप्पय चउ दुगमेगम च जवह झापह !
परमेटिठवाचयाणं अणं च गुरुवयेसेण !!५१!!
माने,
परमेष्ठी वाचक, 35, 16, 6, 5, 4, 2 और 1 अक्षर के मंत्र का जाप करो| ध्यान करो और अन्य मंत्रो को गुरु के उपदेश से जपो और ध्यान करो|
णमोकार महामंत्र से 84 लाख मंत्रों की उत्पत्ति हुई है|
णमोकार महामंत्र, के साथ ॐ लगाना अनिवार्य नही है, क्योकि ॐ एक-अक्षरी मंत्र अपने आप मे अलग से ही एक मंत्र है|
णमोकार महामंत्र पढ़ने के लिए कोई महूर्त नही होता, इसे तो कहीं भी, कभी भी, मन मे बोल सकते हैं|
णमोकार महामंत्र मे 5 पद है ... अर्थात पाँच परमेष्ठी को नमस्कार किया है|
णमोकार महामंत्र मे किसी भी ऐलक, क्षुल्ल्क, आर्यिका आदि को नमस्कार नही किया गया है|
णमोकार महामंत्र को 3 स्वासोछ्वास मे पढ़ना चाहिए|
पहले साँस लेते समय मे णमो अरहंताणं, और साँस छोड़ते समय णमो सिद्धाणं!
दूसरी साँस मे णमो आइरियाणं और उसे छोड़ते हुए णमो उवज्झायाणं
तीसरी साँस लेते समय णमो लोए और छोड़ते हुए सव्व साहूणं बोलना चाहिए|
णमोकार महामंत्र का किसी भी अवस्था मे अपमान नही करना, ये मंत्र केवलज्ञान स्वरूप है| शास्त्र सभा के अंत मे जिनवाणी माता की स्तुति उपरांत 9 बार णमोकार महामंत्र बोलते हैं|
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