Posted on 20-Jul-2023 04:25 PM
जय जय श्री भरतजिन, तुम हो तारण तरन। भविजन प्यारे, इन्द्र धरणेन्द्र स्तुति धर तुम्हारे।।
१. प्रभु तुम सर्वार्थसिद्धि से आये। माता नंदा के प्रिय सुत कहाये॥
आदि नृप के नन्दन, तुमको शत शत वंदन, हों हमारे।। इन्द्र ।।
२. कर्मयुग में हुए तुम विधाता। लोकहित मार्ग के तुम ही ज्ञाता ॥
अंक, अक्षर, कला, तुमसे प्रकटे प्रभो! शिल्प सारे।। इन्द्र ।।
३. देखे सिरकेश की शुक्लता को राज छोड़ गये देव वन को।
योग साधा कठिन, कर्म बंधन गहन, तोड़ डाले।। इन्द्र ।।
४. सिद्ध परमात्म पद पा गये तुम शंभु ब्रह्मा जिनेश्वर हुए तुम॥
सिर नवाते हुए, गुणगण गाते हुए, गणधर हारे॥ इन्द्र ।।
५. नाथ अपनी चरण भक्ति दीजे। आत्मगुण सिन्धु में मन कीजै ॥
छीजे आवागमन, शिवपुर में हो गमन, कर्म झारे।। इन्द्र ।।
जय जय श्री भरतजिन, तुम हो तारण तरन भविजन प्यारे, इन्द्र धरणेन्द्र स्तुति धरतुम्हारे।
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