Posted on 09-May-2023 09:38 PM
श्री कुंथुनाथ प्रभु की, हम आरति करते हैं
आरति करके जनम-जनम के पाप विनशते हैं
सांसारिक सुख के संग आत्मिक सुख भी मिलते हैं
श्री कुंथुनाथ प्रभु की, हम आरति करते हैं॥
जब गर्भ में प्रभु तुम आए-हां आए,
पितु सूरसेन श्रीकांता माँ हरषाए।
सुर वन्दन करने आए-हां आए,
श्रावण वदि दशमी गर्भकल्याण मनाएं।
हस्तिनापुरी की उस पावन,धरती को नमते हैं
आरति करके ...॥१॥
वैशाख सुदी एकम में-एकम में,
जन्मे जब सुरगृह में बाजे बजते थे।
सुरशैल शिखर ले जाकर-ले जाकर,
सब इन्द्र सपरिकर करें न्हवन जिनशिशु पर।
जन्मकल्याणक से पावन,उस गिरि को जजते हैं
आरति करके ...॥२॥
फिर बारह भावना भाई-हां भाई,
वैशाख सुदी एकम दीक्षा तिथि आई।
लौकान्तिक सुरगण आए-हां आए,
वैराग्य प्रशंसा द्वारा प्रभु गुण गाएं।
उन मनपर्ययज्ञानी मुनि को,शत-शत नमते हैं
आरति करके ...॥३॥
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