Posted on 04-Jul-2023 05:08 PM
श्री ज्ञान सिन्धु आचार्य मूरत ज्ञान की।
चारित्र विभूषण राह चले निर्वाण की।।
धन्य भाग्य है आज शरण तुम आय के।
आह्वानन मुनिराज करूँ हर्षाय के।।
ॐ ह्लीं श्री १०८ ज्ञानसागराचार्यवर्य! अत्र अवतर अवतर संवौषट्।
ॐ ह्लीं श्री १०८ ज्ञानसागराचार्यवर्य! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः ।
ॐ ह्लीं श्री १०८ ज्ञानसागराचार्यवर्य! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। अष्टक
जल ले पद प्रक्षालन आय, जनम-मरण मेरा मिट जाय।
परम सुख होय गुरु पद पूज परम सुख होय ।।
जय जय गुरुवर ज्ञान महान, ज्ञान रतन का करते दान।। परम०
ॐ ह्लीं आचार्यश्रीज्ञानसागरमुनीन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति ...।
चंदन चरण चढ़ावन आय, मिट जाये भव का संताप ।
परम सुख होय गुरु पद पूज परम सुख होय ।।
जय जय गुरुवर ज्ञान महान, ज्ञान रतन का करते दान।। परम०
ॐ ह्लीं आचार्यश्रीज्ञानसागरमुनीन्द्राय संसारतापाविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति...।
तन्दुल श्वेत अखंडित लाय, पूजा कर अक्षय पद पाय ।
परम सुख होय गुरु पद पूज परम सुख होय ।।
जय जय गुरुवर ज्ञान महान, ज्ञान रतन का करते दान ।। परम०
ॐ ह्लीं आचार्य श्रीज्ञानसागरमुनीन्द्राय अक्षयपदप्राप्तयेऽक्षतान् निर्वपामीति...।
बहु विधि सुन्दर पुष्प मंगाय, अरपत काम रोग नाश जाय ।
परम सुख होय गुरु पद पूज परम सुख होय ।।
जय जय गुरुवर ज्ञान महान, ज्ञान रतन का करते दान ।। परम०
ॐ ह्लीं आचार्य श्रीज्ञानसागरमुनीन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पाणि निर्वपामीति...।
नानाविध नैवेद्य चढ़ाय, क्षुधा रोग का शमन कराय।
परम सुख होय गुरु पद पूज परम सुख होय ।।
जय जय गुरुवर ज्ञान महान, ज्ञान रतन का करते दान ।। परम०
ॐ ह्लीं आचार्यश्रीज्ञानसागरमुनीन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति...।
दीपक लेकर पूज रचाय, आतम ज्योति जगे उर माय ।
परम सुख होय गुरु पद पूज परम सुख होय ।।
जय जय गुरुवर ज्ञान महान, ज्ञान रतन का करते दान ।। परम०
ॐ ह्लीं आचार्यश्रीज्ञानसागरमुनीन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति...।
धूप जरे धूपायन माँहिं, पूजत आठ कर्म जल जाहिं ।
परम सुख होय गुरु पद पूज परम सुख होय ।।
जय जय गुरुवर ज्ञान महान, ज्ञान रतन का करते दान ।। परम०
ॐ ह्लीं आचार्य श्रीज्ञानसागरमुनीन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति...।
श्रीफल एला खारक लाय, पूजत पद शिव लक्ष्मी पाय ।
परम सुख होय गुरु पद पूज परम सुख होय ।।
जय जय गुरुवर ज्ञान महान, ज्ञान रतन का करते दान।। परम०
ॐ ह्लीं आचार्य श्रीज्ञानसागरमुनीन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति...।
अष्ट द्रव्य के अर्घ्य बनाय आत्मशांति हित चरण चढ़ाय ।
परम सुख होय गुरु पद पूज परम सुख होय ।।
जय जय गुरुवर ज्ञान महान, ज्ञान रतन का करते दान ।। परम०
ॐ ह्लीं आचार्य श्रीज्ञानसागरमुनीन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति...।
जयमाला
दोहा
सरल गभीर,अति सौम्य जू,मूर्ति श्रीऋषिराज ।मृदुभाषी निर्भीक पटु, तारण तरण जिहाज ।।
निरभिमान अनुभव महान,सहनशील गुणखान । भक्ति भाव गुण मालिका,कहता है अज्ञान ।।
चौपाई
जय जय ज्ञानी दधि गुणवन्ता,चरण तुम्हारे जगत नमन्ता ।
बाल ब्रह्मचारी तुम गुरुवर,ज्ञान ध्यान तल्लीन तपोधर ।।
राजस्थान गाँव राणोली,जहां जनम के अखियाँ खोली ।
धन्य धन्य तुम जन्म के दाता,पिता चतुर्भुज घृतवरी माता ।।
गोत्र छाबड़ा कुल उजियारे,नामकरण भूरामल प्यारे ।
अठदश वर्ष शील व्रत धारा,आगम ज्ञान हेतु सुखकारा ।।
वीर सिन्धु आचार्य की वाणी,सुनकर आगम हित की ठानी।
क्षुल्लक ऐलक पद को धारा,फिर मुनि पद धर किया प्रचारा ।।
वीर चतुर्बीस चौरासी,भव तन नश्वर भये उदासी ।
शिव सिन्धु आचार्य तुम्हारे,जयपुर माँहिं माहव्रत धारे ।।
तत्त्व ज्ञान देते हित गुरुवर भ्रमण किया निज संघ बनाकर ।
ज्ञान दधि के ज्ञान से सारी,हुई प्रभावित जनता सारी ।।
गुरुवर ज्ञानी आगम के थे,हिन्दी संस्कृत ग्रन्थ रचे थे ।
नगर नसीराबाद पधारे,आयु सुनकर जग जन सारे ।।
चारित गुण लख विनती कीनी,तब आचारज पदवी दीनी ।
उई विद्या और विवेक के दाता,शरणागत में शिवमग दाता ।।
ॐ ह्लीं आचार्यश्रीज्ञानसागरमुनीन्द्राय जयमालापूर्णांर्घ्य निर्वपामीति...।
दोहा
ज्ञान सिन्धु दरबार में मची ज्ञान की लूट। झोली जो भरता प्रभु, भव से जाता छूट ।।
इत्याशीर्वाद
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