Posted on 14-Jul-2023 05:02 PM
श्री जिनराज चतुर्दश जग जयकार जी ।
कर्मनाश भवतार सु शिवसुख-धारजी ॥
संवौषट् ठः ठः सु वषट् यह उच्चरूं ।
आह्वानन स्थापन मम सन्निधि करूं ॥
ॐ ह्रींश्रीवृषभाद्यनन्तनाथपर्यन्तचतुर्दशजिनेन्द्राः ! अत्र अवतरत अवतरत संवौषट् । अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः । अत्र मम सन्निहिता भवत भवत वषद् ।
अष्टक
(हरिगीतिका)
गंगादि तीरथ को सुजल भर,कनकमय भृंगार में ।
चउदश जिनेश्वर चरणयुग परि, धार डारों सार में ।
श्रीवृषभ आदि अनन्त जिन, पर्यंत पूजौं ध्यायके ।
करि अनंतव्रत तप कर्म हनि के, लहों शिवसुख जायके ॥
ॐह्रींश्रीवृषभाद्यनन्तनाथपर्यन्तचतुर्दशजिनेन्द्रेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
चंदन अगर घनसार आदि, सुगंधित द्रव्य घसायके ।
सहजहि सुगन्ध जिनेन्द्रके पद,चर्चों सुखदायके॥
श्रीवृषभ आदि अनन्त जिन, पर्यंत पूजौं ध्यायके ।
करि अनंतव्रत तप कर्म हनि के, लहों शिवसुख जायके ॥
ॐह्रींश्रीवृषभाद्यनन्तनाथपर्यन्तचतुर्दशजिनेन्द्रेभ्यो भवातापविनाशनाय चंदनं ।
तंदुल अखंडित अति सुगंध, सुमिष्ट लेके कर धरों ।
जिनराज तुम चरनन निकट भवि पाय पूजौं शुभ भरों ॥
श्रीवृषभ आदि अनन्त जिन, पर्यंत पूजौं ध्यायके ।
करि अनंतव्रत तप कर्म हनि के, लहों शिवसुख जायके ।।
ॐह्रींश्रीवृषभाधनन्तनाथपर्यन्तचतुर्दशजिनेन्द्रेभ्योऽक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् ।
चंपा चमेली केतकी पुनि,मोगरो शुभ लायके।
केवड़ो कमल गुलाब गैंदा, जुही सुमाल बनायके ॥
श्रीवृषभ आदि अनन्त जिन, पर्यंत पूजौं ध्यायके ।
करि अनंतव्रत तप कर्म हनि के, लहों शिवसुख जायके ॥
ॐह्रींश्रीवृषभाद्यनन्तनाथपर्यन्तचतुर्दशजिनेन्द्रेभ्यः कामवाणविध्वंसनाय पुष्पं ।
लाडू कलाकंद सेव घेवर और मोतीचूर ले ।
गूंजा सु पेड़ा क्षीर व्यंजन, थाल में भरपूरले
श्रीवृषभ आदि अनन्त जिन, पर्यंत पूजौं ध्यायके ।
करि अनंतव्रत तप कर्म हनि के, लहों शिवसुख जायके ॥
ॐह्रींश्रीवृषभाद्यनन्तनाथपर्यन्तचतुर्दशजिनेन्द्रेभ्यः क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्य ।
ले रत्नजड़ित सु आरती, ता मांहि दीप संजोय के ।
जिनराज तुम पद आरती कर, तिमिरमिथ्या सु खोय के ॥
श्रीवृषभ आदि अनन्त जिन, पर्यंत पूजौं ध्यायके ।
करि अनंतव्रत तप कर्म हनि के, लहों शिवसुख जायके ॥
ॐह्रींश्रीवृषभाधनन्तनाथपर्यंतचतुर्दशजिनेन्द्रेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपं ।
चंदन अगर तगर सिलारस, कर्पूर की करि धूप को ।
ता गंध मधु चकित सो, खेऊँ निकट जिनभूप को ।
श्रीवृषभ आदि अनन्त जिन, पर्यंत पूजौं ध्यायके ।
करि अनंतव्रत तप कर्म हनि के, लहों शिवसुख जायके ॥
ॐह्रींश्रीवृषभाद्यनन्तनाथपर्यंतचतुर्दशजिनेन्द्रेभ्योऽष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं ।
नारिंग केला दाख दाडिम, बीजपूर मंगाय के ।
पुनि आम्र और बादाम खारिक, कनक थाल भरायके ॥
श्रीवृषभ आदि अनन्त जिन, पर्यंत पूजौं ध्यायके ।
करि अनंतव्रत तप कर्म हनि के, लहों शिवसुख जायके ॥
ॐ ह्रीं श्रीवृषभाद्यनन्तनाथपर्यंतचतुर्दशजिनेन्द्रेभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं ।
जल और चंदन अखत पुष्प, सुगंध बहुविध लायके ।
नैवेद्य दीप सुधूप फल इनको, जु अर्घ्य बनायके ।।
श्रीवृषभ आदि अनन्त जिन, पर्यंत पूजौं ध्यायके ।
करि अनंतव्रत तप कर्म हनि के, लहों शिवसुख जायके ।।
ॐह्रींश्रीवृषभाद्यनन्तनाथपर्यन्तचतुर्दशजिनेन्द्रेभ्योऽनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य ।।
जयमाला
पद्धरि छन्द
श्री वृषभनाथ वृष को प्रकाश, भविजन को तारे पाप नाश ।
जय अजितनाथ जीते सुकर्म ले क्षमा खड्ग भेदे जु मर्म ॥
जय संभव जग सुख के निधान, जग सुखकर्ता तुम दियो ज्ञान ।
जय अभिनन्दन पद धरो ध्यान, तासों प्रगटे शुभज्ञान भान ।।
जय सुमति सुमति के देनहार, जासों उतरे भव उदधि पार ।
जय पद्म पद्म पदकमल तोहि, भविजन अति सेवें मगन होहि ॥
जय जय सुपार्श्व तुम नमत पाय, क्षय होत पाप बहु पुन्य थाय ।
जय चन्द्रप्रभ शशिकोट भान, जग का मिथ्यातम हरो जान ॥
जय पुष्पदन्त जगमांहि सार, तुम मार्यौ ध्यान कुठार मार ।
करि धर्मभाव जग में प्रकाश, हरि पाप तिमिर दियो मुक्तिवास ॥
जय शीतलजिन हरभव प्रवीन, हर पाप ताप जगसुखी कीन ।
श्रेयांस कीनो जग को कल्यान दे धर्म दुखित तारे सुजान ॥
जय वासुपूज्य जिन नमों तोहि सुर नर मुनि पूजत गर्व खोहि ।
जय विमल विमल गुण लीन मेय, भवि करे आप सम सुगुण देव ॥
जय अनन्तनाथ करि अनन्तवीर्य, हरि घाति कर्म धरि अनन्तवीर्य ।
उपजायो केवलज्ञान भान, प्रभु लखे चराचर सब सुजान ॥
ॐह्रींश्रीवृषभाधनन्तनाथपर्यन्तचतुर्दशजिनेन्द्रेभ्योऽर्घ्यं ॥
दोहा
ये चौदह जिन जगत में, मंगलकरन प्रवीन पापहरन बहु सुखकरन, सेवक सुखमय कीन॥ इत्याशीर्वादः पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्
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