बाल संस्कार सौरभ भाग-१(पाप ,इन्द्रियाँ,गतियाँ)



पाप 

पाप कितने होते है ? - पाप पाँच होते हैं।

कौन-कौन से होते हैं ? - हिंसा, झुठ, चोरी, कुशील, परिग्रह।

पाप क्या कहलाता है ? - बुरा कार्य है पाप कहाता, नरक निगोद हमे ले जाता, वो ही पाप कहाता है। 

इनकी संख्या होती पाँच, मत आने दो उनकी आँच।

परिभाषा उनकी बतलाता, पाँच पाप से दूर भगाता।

हिंसा पाप है क्या कहलाता ?किसी जीव को नहीं सताओ, सब जीवो के प्राण बचाओ। 

परम अहिंसा धर्म बताता, हिंसा पहला पाप कहाता। 

झुठ पाप है क्या कहलाता ? - झुठ कभी मुख से मत बोलो, सदा सत्य ह्रदय मे तोलो।

सत्य धर्म यह पाठ सिखाता, झूठ पाप से हमें बचाता।

चोरी पाप है क्या कहलाता ? - नहीं किसी की वस्तु चुराओ, मालिक की आज्ञा से लाओ।

धर्म अचौर्य यही सिखलाता, चोरी तीजा पाप कहाता।

कुशील पाप है क्या कहलाता? - बुरी नजर से कभी न देखो, पर नारी को मां सम देखो।

ब्रह्मचर्य यह पाठ सिखाता, कुशील चौथा पाप कहाता।

परिग्रह पाप है क्या कहलाता ? - कभी अधिक धन को मत जोड़ो, ममता लालच मन से छोड़ो।

अपरिग्रह का नियम बनाओ, जोड़ परिग्रह नरक न जाओ।

पाँच पाप से रहना दूर, पाओगे तुम सुख भरपूर।

विद्या पास में आयेगी, तुमको मोक्ष दिलावेगी।

 

पाँच पाप में प्रसिद्ध पुरूष

धनश्री सत्यघोषों च तापसा रक्षकावपि। उपाख्येयास्तथा श्मश्रु, नवनीतों यथाक्रमं ॥ 

हिंसा - धनश्री

झूठ - सत्यघोष

चोरी - तापस

कुशील - कोतवाल

परिग्रह - श्मश्रुनवनीत

 

पाँच अणुव्रत में प्रसिद्ध

मातङ्गो धनदेवश्च, वारिषेण स्ततः पर:। नीली जयश्च सम्प्राप्ता:, पूजातिशयमुत्तमम्‌।।

अहिंसा - यमपाल चाण्डाल

सत्य - धनदेव

अचौर्य - वारिषेण 

ब्रह्मचर्य - नीली 

अपरिग्रह - जयकुमार

 

इन्द्रियाँ 

पाठ पढ़ें अब इन्द्रिय ज्ञान, उन सबकी है क्या पहचान ?

जिससे जीवों की पहचान, परिभाषा इन्द्रिय की जान।

इन्द्रियाँ कितनी होती हैं ? - इन्द्रियाँ पांच होती हैं।

कौन-कौन सी होती है ? - स्पर्शन, रसना, घ्राणेन्द्रिय, नेत्रेन्द्रिय, कर्णेन्द्रिय। 

इन सबकी है क्या पहचान ? - पाठ पढ़े अब इन्द्रिय ज्ञान।  

छूकर ज्ञान कराती, स्पर्शन कहलाती है।

जीव्हा स्वाद चखाती है, रसनेन्द्रिय कहलाती है।

नासा गंध सुंघाती है, घ्राणेन्द्रिय कहलाती है।

आँख जो रंग दिखाती है, नेत्रेन्द्रिय कहलाती है। 

कान शब्द सुनाती है, कर्णेन्द्रिय कहलाती है।

अब इनकी पहचान बताता, इनके विषय में तुम्हे बताता। 

 

पाँच इन्दिय के विषय

स्पर्शन के 8 भेद - हल्का-भारी, कड़ा-नरम, रूखा-चिकना, ठण्डा-गरम

रसना के 5 भेद - खट्टा, मिठा, कड़वा, कषायला, चरपरा

घ्राण के 2 भेद - सुगंध, दुर्गन्ध

रंग के 5 भेद - लाल, पीला, नीला, काला और सफेद

शब्द के 7 भेद - सा, रे, गा, म, प, ध, नि

 

गतियाँ

गतियाँ कितनी होती हैं, गतियाँ चार होती हैं।

कौन-कौन सी होती हैं, नरक गति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति।

जहाँ नारकी रहते हैं, उसे नरक गति कहते हैं।

पशु जानवर रहते हैं, तिर्यंच गति उसे कहते हैं।

हम सब मानव रहते हैं, मनुष्य गति कहते हैं।

देव जहाँ पर रहते हैं, उसे देवगति कहते हैं।

ये गतियाँ क्यों पाते है - कारण यहाँ बताते हैं।

हिंसा पाप जो करते हैं, प्रभु जाप न करते हैं।

नरक गति मे जाते हैं, दुःख मय जीवन पाते हैं।

माया चारी करते हैं, बगुला जैसे रहते हैं

तिर्यंच गति को पाते हैं, पशु बन भार उठाते हैं।

मधुर वचन जो करते हैं, दया धर्म से रहते हैं।

मनुष्य गति वे पाते हैं, हम जैसे बन जाते हैं।

पाँच पाप का त्याग करें, पाँच महाव्रत आप धरे।

संयम भाव सजाते हैं, देव गति को पाते हैं।