Posted on 04-Jan-2021 08:39 PM
जिनवाणी स्तुति - 1
है जिनवाणी भारती, तोहि जपूँदिन रैन,
जो तेरी शरणा गहै, सो पावे सुख चैन।
जा वाणी के ज्ञान तैं, सूझे लोकालोक,
सो वाणी मस्तक नमूँ सदा देत हूँ ढोक।
देव भजूँ अरिहन्त को, गुरु सेवा निर्ग्रन्थ,
दया धर्म पालो सदा, यही मोक्ष का पंथ।
जिनवाणी स्तुति - 2
पीयूष है विषय सौख्य विरेचना है,
पीते सुशीघ्र मिटती चिर वेदना है।
भाई! जरा जनम रोग निवारती है,
संजीवनी सुखकरी जिन भारती है॥
हे! शारदे, अब कृपा कर दे जरा तू,
तेरा उपासक खड़ा भव से डरा जो।
माता विलम्ब करना मत, मैं पुजारी,
आशीष दे बन सकूँ बस निर्विकारी॥
होकर विलीन जिसमें मन मोद पाते,
संसारी जीव भव वारिधि तैर जाते।
श्रीजैन शासन रहे जयवन्त प्यारा,
भाई! यही शरण जीवन है हमारा॥
वाणी जिनेन्द्र कथिता दुःख हारणी है,
संजीवनी सुखकरी जिनभारती है।
तेरा करूँ श्रवण मैं हे! अम्ब देवी,
तो बन सकूँ शीघ्र ही निज आत्मसेवी ॥
- आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
गुरू - वाणी
1. आधुनिकता की होड़ मे अपनी मूल संस्कृति को नही भूलना चाहिये।
2. धीरे ही सही पर मोक्षमार्ग मे सतत् आगे बढ़ते रहना है।
3. जो छोटे से भी सद्व्यवहार करे वह महान् है।
4. हर पदार्थ मे कोई न कोई गुण अवश्य होता है हमे उसे ग्रहण करना चाहिये।
5. महत्व इस बात का नहीं कि हमने क्या किया, महत्व इस बात का है कि हमें क्या करना है।
6. पापों को छोड़ना, छुपाने से कई गुना सरल है।
7. जो वर्तमान से संतुष्ट नहीं, वह भविष्य मे कभी संतुष्ट नहीं हो सकता।
8. नियम छोटे बड़े नहीं होते, महत्वपूर्ण नियम से जुड़ी निष्ठा है।
9. जीवन एक कड़वी तुम्बी है, उपभोग करोगे मर जाओगे, उपयोग करोगे तर जाओगे।
10. प्रतिकूलता मे समता का भाव बनाये रखना साधुता ही पहचान है।
11. हम मुनि नहीं तो कम से कम श्रावक ही बन जायें।
12. तन की बिमारी को मन पर हावी मत होने दो, क्योंकि तन की बिमारी का इलाज संभव है, मन की बिमारी का नहीं।
13. सकारात्मक सोच प्रतिकूलता में भी प्रसन्न बनाये रखती है।
14. अपनी भलाई चाहते हो तो दूसरों की बुराई मत करो।
15. जो शिष्य बनता है उसे ही गुरू मिलते हैं।
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