Posted on 18-Jan-2021 09:20 PM
जैन
जैन - जो जिन का पथगामी हो, जैन उसे हम कहते हैं।
जिन - जीता जिनने इन्द्रिय मन, कहते हैं हम उनको जिन।
J - Justice जस्टिस - जिसमें न्याय, निष्पक्षता हो।
A - Affection अफेक्शन - जिसके अंदर प्रेम हो।
I - Intraffection इंट्राफेक्शन - जो गहन आध्यात्मिक रूचि वाला हो।
N - Novelty नॉवल्टी - जिसका मन दया से भीगा हो।
वह जैन कहलाता है।
जैन धर्म - जिनेन्द्र भगवान द्वारा प्रवर्तित धर्म।
सच्चे जैनी के तीन चिन्ह -
जो सच्चे जैनी कहलाते, तीन चिन्ह को वे अपनाते।
- प्रथम देव दर्शन नित करता, दूजा दिन में भोजन करना।
- पानी सदा छान कर पीना, दया-धर्म अपनाकर जीना।
- पहले तीन चिन्ह अपनाओ, तभी सच्चे जैनी कहाओ।
श्रावक
श्रा - श्रद्धावान - सम्यग्दर्शन
व - विवेकवान - सम्यग्ज्ञान
क - क्रियावान - सम्यक्चारित्र
श्रावक के तीन भेद - पाक्षिक, नैष्ठिक एवं साधक।
पाक्षिक - जो जैन कुल अनुसार आचरण करे।
नैष्ठिक - व्रतधारी श्रावक।
साधक - सल्लेखनाधारी श्रावक।
श्रावक के होते हैं कितने मूल गुण-
श्रावक के होते हैं आठ मूल गुण।
श्रावक के होते हैं कितने आवश्यक-
श्रावक के होते हैं छः आवश्यक
श्रावक के होते हैं कितने व्रत-
श्रावक के होते हैं - बारह व्रत।
श्रावक की होती है कितनी प्रतिमाएँ-
श्रावक की होती है ग्यारह प्रतिमाएँ।
श्रावक के अष्टमूलगुण-
मांस का - त्याग
मद का - त्याग
मधु का - त्याग
पाँच उदम्बर फलों का - त्याग
रात्रि भोजन का - त्याग
देव दर्शन का - नियम
जीव दवा करने का - नियम
पानी छानकर पीने का - नियम
रत्नत्रय
सम्यग्दर्शनज्ञानचरित्राणि मोक्षमार्ग:।
सम्यग्दर्शन - सच्ची श्रद्धा
सम्यग्ज्ञान - यथार्थ ज्ञान
सम्यक्चारित्र - सच्ची श्रद्धा और ज्ञान युक्त सदाचरण।
सच्ची श्रद्धा - सच्चे देव, शास्त्र, गुरू पर दृढ़ श्रद्धा।
सच्चे देव - जो वीतरागी, सर्वज्ञ एवं हितोपदेशी हों।
सच्चे शास्त - जो सच्चे देव द्वारा प्रणीत हो।
सच्चे गुरु - जो आरंभ परिग्रह से रहित हो।
देखभाल कर चलना
देखना - सम्यग्दर्शन
भालना - सम्यग्ज्ञान
चलना - सम्यक्चारित्र
विशेष - सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र रूपी तीन रत्नो द्वारा ही हम अपना लौकिक और पारलौकिक जीवन सफल बना सकते हैं।
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