नंदीश्वर द्वीप पूजन (कविश्री द्यानतराय)



कविश्री द्यानतराय

 

(आडिल्ल छन्द)

सरब-परव में बड़ो अठाई परव है |

नंदीश्वर सुर जाहिं लेय वसु दरब है ||

हमें सकति सो नाहिं इहाँ करि थापना |

पूजें जिनगृह-प्रतिमा है हित आपना ||

ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपे द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमासमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट्! (आह्वाननम्)

ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपे द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमासमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:! (स्थापनम्)

ॐ ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपे द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमासमूह! अत्र मम सत्रिहितो भव भव वषट्! (सत्रिधिकरणम्)

 

कंचन मणि मय भृंगार, तीरथ नीर भरा |

तिहुँ धार दयी निरवार, जामन मरन जरा ||

नंदीश्वर श्रीजिन धाम, बावन पूज करूं |

वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूं ||

ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपे द्विपंचाशज्जिनालयस्थजिनप्रतिमभ्यो जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।१। 

 

भव तप हर शीतल वाच, जो चंदन नाहीं |

प्रभु यह गुन कीजै साँच, आयो तुम ठाहीं ||

नंदीश्वर श्रीजिन धाम, बावन पूज करूं |

वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूं ||

 ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपे द्विपंचाशज्जिनालयस्थजिनप्रतिमभ्यो भवताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।२।

 

उत्तम-अक्षत जिनराज, पुंज धरे सोहे |

सब जीते अक्ष समाज, तुम सम अरु को है ||

नंदीश्वर श्रीजिन धाम, बावन पूज करूं |

वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूं ||

ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपे द्विपंचाशज्जिनालयस्थजिनप्रतिमभ्यो अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।३।

 

तुम कामविनाशक देव, ध्याऊँ फूलन सों |

लहुँ शील लच्छमी एव, छूटूं सूलन सों ||

नंदीश्वर श्रीजिन धाम, बावन पूज करूं |

वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूं ||

 ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपे द्विपंचाशज्जिनालयस्थजिनप्रतिमभ्यो कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।४।

 

नेवज इंद्रिय-बलकार, सो तुमने चूरा |

चरु तुम ढिंग सोहे सार, अचरज है पूरा ||

नंदीश्वर श्रीजिन धाम, बावन पूज करूं |

वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूं ||

 ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपे द्विपंचाशज्जिनालयस्थजिनप्रतिमभ्यो क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।५।

 

दीपक की ज्योति प्रकाश, तुम तन माहिं लसे |

टूटे करमन की राश, ज्ञान कणी दरसे ||

नंदीश्वर श्रीजिन धाम, बावन पूज करूं |

वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूं ||

ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपे द्विपंचाशज्जिनालयस्थजिनप्रतिमभ्यो मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।६।

 

कृष्णागरु धूप सुवास, दश दिशि नारि वरें |

अति हरष भाव परकाश, मानों नृत्य करें ||

नंदीश्वर श्रीजिन धाम, बावन पूज करूं |

वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूं ||

ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपे द्विपंचाशज्जिनालयस्थजिनप्रतिमभ्यो अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।७।

 

बहुविधि फल ले तिहुँ काल, आनंद राचत हैं |

तुम शिव फल देहु दयाल, तुहि हम जाचत हैं ||

नंदीश्वर श्रीजिन धाम, बावन पूज करूं |

वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूं ||

 ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपे द्विपंचाशज्जिनालयस्थजिनप्रतिमभ्यो मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।८।

 

यह अरघ कियो निज हेत, तुमको अरपतु हूँ |

द्यानत कीज्यो शिव खेत भूमि समरपतु हूँ ||

नंदीश्वर श्रीजिन धाम, बावन पूज करूं |

वसु दिन प्रतिमा अभिराम, आनंद भाव धरूं ||

 ह्रीं श्रीनंदीश्वरद्वीपे द्विपंचाशज्जिनालयस्थजिनप्रतिमभ्यो अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।९।

 

जयमाला

 (दोहा)

कार्तिक फागुन साढ़ के, अंत-आठ-दिन माँहिं |

नंदीश्वर सुर जात हैं, हम पूजें इह ठाहिं ||१||

(लक्ष्मी छंद)

एक सौ त्रेसठ कोडि जोजन महा |

लाख चौरासिया एक-दिश में लहा ||

आठमों द्वीप नंदीश्वरं भास्वरं |

भौन-बावन्न प्रतिमा नमूं सुखकरं ||२||

 

चार-दिशि चार अंजनगिरी राजहीं |

सहस-चौरासिया एक दिशि छाजहीं ||

ढोल सम गोल ऊपर तले सुन्दरं |

भौन-बावन्न प्रतिमा नमूं सुखकरं ||३||

 

एक इक चार दिशि चार शुभ बावरी |

एक इक लाख जोजन अमल-जल भरी ||

चहुँ दिशा चार वन लाख जोजन वरं |

भौन-बावन्न प्रतिमा नमूं सुखकरं ||४||

 

सोल वापीन मधि सोल-गिरि दधिमुखं |

सहस दश महाजोजन लखत ही सुखं ||

बावरी कोण दो माँहि दो रतिकरं |

भौन-बावन्न प्रतिमा नमूं सुखकरं ||५||

 

शैल-बत्तीस इक सहस जोजन कहे |

चार सोलै मिलैं सर्व बावन लहे ||

एक-इक सीस पर एक जिनमंदिरं |

भौन-बावन्न प्रतिमा नमूं सुखकरं ||६||

 

बिंब अठ एक सौ रतनमयि सोहहीं |

देव देवी सरब नयन मन मोहहीं ||

पाँच सै धनुष तन पद्म-आसन परं |

भौन-बावन्न प्रतिमा नमूं सुखकरं ||७||

 

लाल नख-मुख नयन स्याम अरु स्वेत हैं |

स्याम-रंग भौंह सिर-केश छवि देत हैं ||

वचन बोलत मनों हँसत कालुष हरं |

भौन-बावन्न प्रतिमा नमूं सुखकरं ||८||

 

कोटि-शशि-भानु-दुति-तेज छिप जात है |

महा-वैराग-परिणाम ठहरात है ||

वचन नहिं कहें, लखि होत सम्यक्धरं |

भौन-बावन्न प्रतिमा नमूं सुखकरं ||९||

(सोरठा छन्द)

ह्रीं श्री नंदीश्वरद्वीपे पूर्वपश्चिमोत्तरदक्षिणदिशू द्विपंचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्य: जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा 

नंदीश्वर-जिन-धाम, प्रतिमा-महिमा को कहे |

'द्यानत' लीनो नाम, यही भगति शिव-सुख करे ||

।। इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलिं क्षिपेत् ।।