Posted on 18-May-2020 03:59 PM
कविश्री जिनेश्वरदास
(कुसुमलता छंद)
नाभिराय-मरुदेवि के नंदन, आदिनाथ स्वामी महाराज |
सर्वार्थसिद्धि तें आय पधारे, मध्य-लोक माँहिं जिनराज ||
इन्द्रदेव सब मिलकर आये, जन्म-महोत्सव करने काज |
आह्वानन सब विधि मिलकर के, अपने कर पूजें प्रभु आज ||
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर! अवतर! संवौषट्! (इति आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ! तिष्ठ! ठ:! ठ:! (इति स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्! (इति सन्निधिकरणम्)
क्षीरोदधि को उज्ज्वल-जल ले, श्री जिनवर-पद पूजन जाय |
जन्म-जरा-दु:ख मेटन कारन, ल्याय चढ़ाऊँ प्रभुजी के पाँय ||
श्रीआदिनाथजी के चरणकमल पर, बलिबलि जाऊँ मन-वच-काय |
हो करुणानिधि भव-दु:ख मेटो, या तें मैं पूजूं प्रभु-पाँय ||
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।१।
मलयागिरि-चंदन दाह-निकंदन, कंचन-झारी में भर ल्याय |
श्रीजी के चरण चढ़ावो भविजन, भव-आताप तुरत मिट जाय ||
श्रीआदिनाथजी के चरणकमल पर, बलिबलि जाऊँ मन-वच-काय |
हो करुणानिधि भव-दु:ख मेटो, या तें मैं पूजूं प्रभु-पाँय ||
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।२।
शुभशालि अखंडित सौरभमंडित, प्रासुक जल सों धोकर ल्याय |
श्रीजी के चरण-चढ़ावो भविजन, अक्षय पद को तुरत उपाय ||
श्रीआदिनाथजी के चरणकमल पर, बलिबलि जाऊँ मन-वच-काय |
हो करुणानिधि भव-दु:ख मेटो, या तें मैं पूजूं प्रभु-पाँय ||
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।३।
कमल केतकी बेल चमेली, श्रीगुलाब के पुष्प मँगाय |
श्रीजी के चरण-चढ़ावो भविजन, कामबाण तुरत नसि जाय ||
श्रीआदिनाथजी के चरणकमल पर, बलिबलि जाऊँ मन-वच-काय |
हो करुणानिधि भव-दु:ख मेटो, या तें मैं पूजूं प्रभु-पाँय ||
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।४।
नेवज लीना षट्-रस भीना, श्री जिनवर आगे धरवाय |
थाल भराऊँ क्षुधा नसाऊँ, जिन गुण गावत मन हरषाय ||
श्री आदिनाथजी के चरणकमल पर, बलि बलि जाऊँ मन-वच-काय |
हो करुणानिधि भव-दु:ख मेटो, या तें मैं पूजूं प्रभु-पाँय ||
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।५।
जगमग जगमग होत दसौं दिश, ज्योति रही मंदिर में छाय |
श्रीजी के सन्मुख करत आरती मोह-तिमिर नासें दु:खदाय ||
श्री आदिनाथजी के चरणकमल पर, बलिबलि जाऊँ मन-वच-काय |
हो करुणानिधि भव-दु:ख मेटो, या तें मैं पूजूं प्रभु-पाँय ||
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय मोहांधकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।६।
अगर कपूर सुगंध मनोहर चंदन कूट सुगंध मिलाय |
श्रीजी के सन्मुख खेयं धुपायन, कर्म जरें चहुँगति मिटि जाय ||
श्री आदिनाथजी के चरणकमल पर, बलिबलि जाऊँ मन-वच-काय |
हो करुणानिधि भव-दु:ख मेटो, या तें मैं पूजूं प्रभु-पाँय ||
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।७।
श्रीफल और बादाम सुपारी, केला आदि छुहारा ल्याय |
मोक्ष महा-फल पावन कारन, ल्याय चढ़ाऊँ प्रभु जी के पाँय ||
श्री आदिनाथजी के चरणकमल पर, बलिबलि जाऊँ मन-वच-काय |
हो करुणानिधि भव-दु:ख मेटो, या तें मैं पूजूं प्रभु-पाँय ||
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये-फलं निर्वपामीति स्वाहा।८।
शुचि निर्मल नीरं गंध सुअक्षत, पुष्प चरू ले मन हरषाय |
दीप धूप फल अर्घ सु लेकर, नाचत ताल मृदंग बजाय ||
श्री आदिनाथजी के चरणकमल पर, बलिबलि जाऊँ मन-वच-काय |
हो करुणानिधि भव-दु:ख मेटो, या तें मैं पूजूं प्रभु-पाँय ||
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।९।
पंचकल्याणक-अर्घ्यावली
(दोहा)
सर्वारथ-सिद्धि तें चये, मरुदेवी उर आय |
दोज असित आषाढ़ की, जजूँ तिहारे पाँय ||
ॐ ह्रीं श्री आषाढ़-कृष्ण-द्वितीयायां गर्भ-कल्याणक-प्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।१।
चैत वदी नौमी दिना, जन्म्या श्री भगवान |
सुरपति उत्सव अति कर्यो, मैं पूजूं धरि ध्यान ||
ॐ ह्रीं श्री चैत्र-कृष्ण-नवम्यां जन्म-कल्याणक-प्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।२।
तृणवत् ऋद्धि सब छांड़ि के तप धार्यो वन जाय |
नौमी-चैत्र-असेत की जजूँ तिंहारे पाँय ||
ॐ ह्रीं श्री चैत्र-कृष्ण-नवम्यां तप-कल्याणक-प्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।3।
फाल्गुन-वदि-एकादशी, उपज्यो केवलज्ञान |
इन्द्र आय पूजा करी, मैं पूजूं यह थान ||
ॐ ह्रीं श्री फाल्गुन-कृष्ण-एकादश्यां ज्ञान-कल्याणक-प्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।४।
माघ-चतुर्दशि-कृष्ण की, मोक्ष गये भगवान |
भवि जीवों को बोध के, पहुँचे शिवपुर थान ||
ॐ ह्रीं श्री माघ-कृष्ण-चतुर्दश्यां मोक्ष-कल्याणक-प्राप्ताय श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।५।
जयमाला
(सोंरठा छन्द)
आदीश्वर महाराज, मैं विनती तुम से करूँ |
चारों गति के माहिं, मैं दु:ख पायो सो सुनो ||
(लावनी छन्द)
ये अष्ट-कर्म मैं हूँ एकलो ये दुष्ट महादु:ख देत हो |
कबहूँ इतर-निगोद में मोकूँ पटकत करत अचेत हो ||
म्हारी दीनतणी सुन वीनती ||१||
प्रभु! कबहुँक पटक्यो नरक में, जठे जीव महादु:ख पाय हो |
निष्ठुर निर्दई नारकी, जठै करत परस्पर घात हो ||
म्हारी दीनतणी सुन वीनती ||२||
कोइयक बांधे खंभ सों पापी दे मुग्दर की मार हो |
कोइयक काटे करौत सों पापी अंगतणी देय फाड़ हो ||
म्हारी दीनतणी सुन वीनती ||३||
इहविधि दु:ख भुगत्या घणां, फिर गति पाई तिरियंच हो |
हिरणा बकरा बाछला पशु दीन गरीब अनाथ हो |
पकड़ कसाई जाल में पापी काट-काट तन खांय हो ||
पकड़ कसाई जाल में पापी काट-काट तन खांय हो ||
म्हारी दीनतणी सुन वीनती ||४||
मैं ऊँट बलद भैंसा भयो, जा पे लाद्यो भार अपार हो |
नहीं चाल्यो जब गिर पड़्यो, पापी दें सोंटन की मार हो ||
म्हारी दीनतणी सुन वीनती ||५||
कोइयक पुण्य-संयोग सूं, मैं तो पायो स्वर्ग-निवास हो |
देवांगना संग रमि रह्यो, जठै भोगनि को परिताप हो ||
म्हारी दीनतणी सुन वीनती ||६||
संग अप्सरा रमि रह्यो, कर कर अति-अनुराग हो |
कबहुँक नंदन-वन विषै, प्रभु कबहुँक वनगृह-माँहिं हो ||
म्हारी दीनतणी सुन वीनती ||७||
यहि विधिकाल गमायके, फिर माला गई मुरझाय हो |
देव-थिति सब घट गई, फिर उपज्यो सोच अपार हो |
म्हारी दीनतणी सुन वीनती ||
सोच करत तन खिर पड्यो, फिर उपज्यो गरभ में जाय हो |
सोच करत तन खिर पड्यो, फिर उपज्यो गरभ में जाय हो |
म्हारी दीनतणी सुन वीनती ||८||
गर्भतणा दु:ख अब कहूँ, जठै सकुड़ाई की ठौर हो |
हलन चलन नहिं कर सक्यो, जठै सघन-कीच घनघोर हो ||
म्हारी दीनतणी सुन वीनती ||९||
माता खावे चरपरो, फिर लागे तन संताप हो |
जो जननी तातो भखे, फिर उपजे तन संताप हो ||
म्हारी दीनतणी सुन वीनती ||१०||
औंधे-मुख झूल्यो रह्यो, फेर निकसन कौन उपाय हो |
कठिन कठिन कर नीसर्यो, जैसे निसरे जंत्री में तार हो ||
म्हारी दीनतणी सुन वीनती ||११||
निकसत ही धरत्यां पड्यो, फिर लागी भूख अपार हो |
रोय-रोय बिलख्यो घनो, दु:ख-वेदन को नहिं पार हो ||
म्हारी दीनतणी सुन वीनती ||१२||
दु:ख-मेटन समरथ धनी, या तें लागूँ तिहारे पांय हो |
सेवक अर्ज करे प्रभु मोकूँ, भवदधि-पार उतार हो ||
म्हारी दीनतणी सुन वीनती ||१३||
(दोहा)
श्री जी की महिमा अगम है, कोई न पावे पार |
मैं मति-अल्प अज्ञान हूँ, कौन करे विस्तार ||
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
विनती ऋषभ जिनेश की, जो पढ़सी मन ल्याय |
सुरगों में संशय नहीं, निश्चय शिवपुर जाय ||
।।इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलिं क्षिपेत्।।
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