श्री अनंतनाथ जिन पूजा



पुष्पोत्तर तजि नगर अजुध्या जनम लियो सूर्या उर आय,

सिंघसेन नृप के नन्दन, आनन्द अशेष भरे जगराय |

गुन अंनत भगवंत धरे, भवदंद हरे तुम हे जिनराय,

थापतु हौं त्रय बार उचरिके, कृपासिन्धु तिष्ठहु इत आय ||

ॐ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् |

ॐ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः |

ॐ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् |

 

शुचि नीर निरमल गंग को ले, कनक भृंग भराइया |

मल करम धोवन हेत, मन वच काय धार ढराइया ||

जगपूज परम पुनीत मीत, अनंत संत सुहावनो |

शिव कंत वंत मंहत ध्यावौं, भ्रंत वन्त नशावनो ||

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि0स्वाहा |1|

 

हरिचन्द कदलीनंद कुंकुम, दंद ताप निकंद है |

सब पापरुजसंताप भंजन, आपको लखि चंद है ||ज0

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि0स्वाहा |2|

 

कनशाल दुति उजियाल हीर, हिमाल गुलकनितें घनी |

तसु पुंज तुम पदतर धरत, पद लहत स्वछ सुहावनी ||ज0

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि0स्वाहा |3|

 

पुष्कर अमरत जनित वर, अथवा अवर कर लाइया |

तुम चरनपुष्करतर धरत, सरशूर सकल नशाइया ||ज0

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि0स्वाहा |4|

 

पकवान नैना घ्रान रसना, को प्रमोद सुदाय हैं |

सो ल्यान चरन चढ़ाय रोग, छुधाय नाश कराय हैं ||ज0

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं नि0स्वाहा |5|

 

तममोह भानन जानि आनन्द, आनि सरन गही अवै |

वर दीप धारौं वारि तुम ढिग, सुपरज्ञान जु द्यो सबै ||ज0

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि0स्वाहा |6|

 

यह गंध चूरि दशांग सुन्दर, धूम्रध्वज में खेय हौं |

वसुकर्म भर्म जराय तुम ढिग, निज सुधातम वेय हौं ||ज0

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि0स्वाहा |7|

 

रसथक्व पक्व सुभक्व चक्व, सुहावने मृदु पावने |

फलासार वृन्द अमंद ऐसो, ल्या पूज रचावने ||ज0

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि0स्वाहा |8|

 

शुचि नीर चन्दन शालिशंदन, सुमन चरु दीवा धरौं |

अरु धूप फल जुत अरघ करिकर, जोरजुग विनति करौं ||ज0

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि0स्वाहा |9|

 

      पंच कल्याणक अर्घ्यावली

असित कार्तिक एकम भावनो, गरभ को दिन सो गिन पावनो |

किय सची तित चर्चन चाव सों , हम जजें इत आनंद भाव सों ||

ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णप्रतिपदायां गर्भमंगलमंडिताय श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |1|

 

जनम जेठवदी तिथि द्वादशी, सकल मंगल लोकविषै लशी |

हरि जजे गिरिराज समाज तें, हम जजैं इत आतम काज तें ||

ॐ ह्रीं जेष्ठकृष्णद्वादश्यां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीअनंत0 अर्घ्यं नि0 |2|

 

भव शरीर विनस्वर भाइयो, असित जेठ दुवादिशि गाइयो |

सकल इंद्र जजें तित आइके, हम जजैं इत मंगल गाइके ||

ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाद्वादश्यां तपःकल्याणकप्राप्ताय श्रीअनंत0 अर्घ्यं नि0 |3|

 

असित चैत अमावसको सही, परम केवलज्ञान जग्यो कही |

लही समोसृत धर्म धुरंधरो, हम समर्चत विघ्न सबै हरो ||

ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णामावस्यायां केवलज्ञानमंडिताय श्रीअनंत0 अर्घ्यं नि0 |4|

 

असित चैत अमावस गाइयो, अघत घाति हने शिवपाइयो |

गिरि समेद जजें हरि आय के, हम जजें पद प्रीति लगाय के ||

ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णाअमावस्यायां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीअनंत0 अर्घ्यं नि0 |5|

 

   जयमाला

तुम गुण वरनन येम जिम, खंविहाय कर मान |

था मेदिनी पदनिकरि, कीनो चहत प्रमान ।।1।।

 

जय अनन्त रवि भव्यमन, जलज वृन्द विहँसाय |

सुमति को कतिय थोक सुख, वृद्ध कियो जिनराय ।।2।।

 

(छंद : नयमलनी तथा चंडी तथा तामरस - मात्रा :१६)

जै अनन्त गुनवंत नमस्ते, शुद्ध ध्येय नित सन्त नमस्ते |

लोकालोक विलोक नमस्ते, चिन्मूरत गुनथोक नमस्ते ।।3।।

 

रत्नत्रयधर धीर नमस्ते, करमशत्रुकरि वीर नमस्ते |

चार अनंत महन्त नमस्ते, जय जय जय शिवकंत नमस्ते ।।4।।

 

पंचाचार विचार नमस्ते, पंच करण मदहार नमस्ते |

पंच पराव्रत-चूर नमस्ते, पंचमगति सुखपूर नमस्ते ।।5।।

 

पंचलब्धि धरनेश नमस्ते, पंचभाव सिद्धेश नमस्ते |

छहों दरबगुन जान नमस्ते, छहों कालपहिचान नमस्ते ।।6।।

 

छहों काय रच्छेश नमस्ते, छह सम्यक उपदेश नमस्ते |

सप्तविशनवन वह्वि नमस्ते, जय केवल अपरह्वि नमस्ते ।।7।।

 

सप्ततत्त्व गुनभनन नमस्ते, सप्तशूभ्र गति हनन नमस्ते |

सप्तभंग के ईश नमस्ते, सातों नय कथनीश नमस्ते ।।8।।

 

अष्टकर मलदल्ल नमस्ते, अष्टजोग निरशल्ल नमस्ते |

अष्टम धराधिराज नमस्ते, अष्ट गुननि सिरताज नमस्ते ।।9।।

 

जय नवकेवल प्राप्त-नमस्ते, नव पदार्थथिति आप्त नमस्ते |

दशों धरम धरतार नमस्ते, दशों बंधपरिहार नमस्ते ।।10।।

 

विघ्न महीधर विज्जु नमस्ते, जय ऊरधगति रिज्जु नमस्ते |

तन कनकंदुति पूर नमस्ते, इखवाक बंशक जसूर नमस्ते ।।11।।

 

धनु पचासतन उच्च नमस्ते, कृपासिंधु गुन शुच्च नमस्ते |

सेही अंक निशंक नमस्ते, चितचकोर मृग अंक नमस्ते ।।12।।

 

राग दोषमदटार नमस्ते, निजविचार दुखहार नमस्ते |

सुर सुरेश गण वृन्द नमस्ते, वृन्द करो सुखकंद नमस्ते ।।13।।

 

जय जय जिनदेवं सुरकृतसेवं, नित कृतिचित्त हुल्लासधरं |

आपद उद्धारं समतागारं, वीरराग विज्ञान भरं ।।14।।

ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथ जिनेन्द्राय महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |

 

जो जन मन वच काय लाय, जिन जजे नेह धर,

वा अनुमोदन करे करावे पढ़े पाठ वर |

ताके नित नव होय सुमंगल आनन्द दाई,

अनुक्रम तें निरवान लहे सामग्री पाई ||

इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)