Posted on 11-Feb-2021 08:10 PM
पुष्पोत्तर तजि नगर अजुध्या जनम लियो सूर्या उर आय,
सिंघसेन नृप के नन्दन, आनन्द अशेष भरे जगराय |
गुन अंनत भगवंत धरे, भवदंद हरे तुम हे जिनराय,
थापतु हौं त्रय बार उचरिके, कृपासिन्धु तिष्ठहु इत आय ||
ॐ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् |
ॐ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः |
ॐ ह्रीं श्रीअनन्तनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् |
शुचि नीर निरमल गंग को ले, कनक भृंग भराइया |
मल करम धोवन हेत, मन वच काय धार ढराइया ||
जगपूज परम पुनीत मीत, अनंत संत सुहावनो |
शिव कंत वंत मंहत ध्यावौं, भ्रंत वन्त नशावनो ||
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि0स्वाहा |1|
हरिचन्द कदलीनंद कुंकुम, दंद ताप निकंद है |
सब पापरुजसंताप भंजन, आपको लखि चंद है ||ज0
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि0स्वाहा |2|
कनशाल दुति उजियाल हीर, हिमाल गुलकनितें घनी |
तसु पुंज तुम पदतर धरत, पद लहत स्वछ सुहावनी ||ज0
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि0स्वाहा |3|
पुष्कर अमरत जनित वर, अथवा अवर कर लाइया |
तुम चरनपुष्करतर धरत, सरशूर सकल नशाइया ||ज0
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि0स्वाहा |4|
पकवान नैना घ्रान रसना, को प्रमोद सुदाय हैं |
सो ल्यान चरन चढ़ाय रोग, छुधाय नाश कराय हैं ||ज0
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं नि0स्वाहा |5|
तममोह भानन जानि आनन्द, आनि सरन गही अवै |
वर दीप धारौं वारि तुम ढिग, सुपरज्ञान जु द्यो सबै ||ज0
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि0स्वाहा |6|
यह गंध चूरि दशांग सुन्दर, धूम्रध्वज में खेय हौं |
वसुकर्म भर्म जराय तुम ढिग, निज सुधातम वेय हौं ||ज0
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि0स्वाहा |7|
रसथक्व पक्व सुभक्व चक्व, सुहावने मृदु पावने |
फलासार वृन्द अमंद ऐसो, ल्याज पूज रचावने ||ज0
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि0स्वाहा |8|
शुचि नीर चन्दन शालिशंदन, सुमन चरु दीवा धरौं |
अरु धूप फल जुत अरघ करिकर, जोरजुग विनति करौं ||ज0
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथजिनेद्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि0स्वाहा |9|
पंच कल्याणक अर्घ्यावली
असित कार्तिक एकम भावनो, गरभ को दिन सो गिन पावनो |
किय सची तित चर्चन चाव सों , हम जजें इत आनंद भाव सों ||
ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णप्रतिपदायां गर्भमंगलमंडिताय श्रीअनंतनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |1|
जनम जेठवदी तिथि द्वादशी, सकल मंगल लोकविषै लशी |
हरि जजे गिरिराज समाज तें, हम जजैं इत आतम काज तें ||
ॐ ह्रीं जेष्ठकृष्णद्वादश्यां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीअनंत0 अर्घ्यं नि0 |2|
भव शरीर विनस्वर भाइयो, असित जेठ दुवादिशि गाइयो |
सकल इंद्र जजें तित आइके, हम जजैं इत मंगल गाइके ||
ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णाद्वादश्यां तपःकल्याणकप्राप्ताय श्रीअनंत0 अर्घ्यं नि0 |3|
असित चैत अमावसको सही, परम केवलज्ञान जग्यो कही |
लही समोसृत धर्म धुरंधरो, हम समर्चत विघ्न सबै हरो ||
ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णामावस्यायां केवलज्ञानमंडिताय श्रीअनंत0 अर्घ्यं नि0 |4|
असित चैत अमावस गाइयो, अघत घाति हने शिवपाइयो |
गिरि समेद जजें हरि आय के, हम जजें पद प्रीति लगाय के ||
ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णाअमावस्यायां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीअनंत0 अर्घ्यं नि0 |5|
जयमाला
तुम गुण वरनन येम जिम, खंविहाय कर मान |
तथा मेदिनी पदनिकरि, कीनो चहत प्रमान ।।1।।
जय अनन्त रवि भव्यमन, जलज वृन्द विहँसाय |
सुमति को कतिय थोक सुख, वृद्ध कियो जिनराय ।।2।।
(छंद : नयमलनी तथा चंडी तथा तामरस - मात्रा :१६)
जै अनन्त गुनवंत नमस्ते, शुद्ध ध्येय नित सन्त नमस्ते |
लोकालोक विलोक नमस्ते, चिन्मूरत गुनथोक नमस्ते ।।3।।
रत्नत्रयधर धीर नमस्ते, करमशत्रुकरि वीर नमस्ते |
चार अनंत महन्त नमस्ते, जय जय जय शिवकंत नमस्ते ।।4।।
पंचाचार विचार नमस्ते, पंच करण मदहार नमस्ते |
पंच पराव्रत-चूर नमस्ते, पंचमगति सुखपूर नमस्ते ।।5।।
पंचलब्धि धरनेश नमस्ते, पंचभाव सिद्धेश नमस्ते |
छहों दरबगुन जान नमस्ते, छहों कालपहिचान नमस्ते ।।6।।
छहों काय रच्छेश नमस्ते, छह सम्यक उपदेश नमस्ते |
सप्तविशनवन वह्वि नमस्ते, जय केवल अपरह्वि नमस्ते ।।7।।
सप्ततत्त्व गुनभनन नमस्ते, सप्तशूभ्र गति हनन नमस्ते |
सप्तभंग के ईश नमस्ते, सातों नय कथनीश नमस्ते ।।8।।
अष्टकर मलदल्ल नमस्ते, अष्टजोग निरशल्ल नमस्ते |
अष्टम धराधिराज नमस्ते, अष्ट गुननि सिरताज नमस्ते ।।9।।
जय नवकेवल प्राप्त-नमस्ते, नव पदार्थथिति आप्त नमस्ते |
दशों धरम धरतार नमस्ते, दशों बंधपरिहार नमस्ते ।।10।।
विघ्न महीधर विज्जु नमस्ते, जय ऊरधगति रिज्जु नमस्ते |
तन कनकंदुति पूर नमस्ते, इखवाक बंशक जसूर नमस्ते ।।11।।
धनु पचासतन उच्च नमस्ते, कृपासिंधु गुन शुच्च नमस्ते |
सेही अंक निशंक नमस्ते, चितचकोर मृग अंक नमस्ते ।।12।।
राग दोषमदटार नमस्ते, निजविचार दुखहार नमस्ते |
सुर सुरेश गण वृन्द नमस्ते, वृन्द करो सुखकंद नमस्ते ।।13।।
जय जय जिनदेवं सुरकृतसेवं, नित कृतिचित्त हुल्लासधरं |
आपद उद्धारं समतागारं, वीरराग विज्ञान भरं ।।14।।
ॐ ह्रीं श्रीअनंतनाथ जिनेन्द्राय महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |
जो जन मन वच काय लाय, जिन जजे नेह धर,
वा अनुमोदन करे करावे पढ़े पाठ वर |
ताके नित नव होय सुमंगल आनन्द दाई,
अनुक्रम तें निरवान लहे सामग्री पाई ||
इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
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