Posted on 15-May-2020 04:29 PM
श्रीमत वीर हरें भवपीर, भरें सुखसागर अनाकुलताई |
केहरि अंक अरीकरदंक, नये हरि पंकति मौलि सुआई ||
मैं तुमको इत थापत हौं प्रभु, भक्ति समेत हिये हरषाई |
हे करुणा-धन-धारक देव, इहां अब तिष्ठहु शीघ्रहि आई ||
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमान जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् |
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमान जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः |
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमान जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् |
क्षीरोदधिसम शुचि नीर, कंचन भृंग भरौं |
प्रभु वेगि हरो भवपीर, यातें धार करौं ||
श्री वीर महा-अतिवीर, सन्मति नायक हो |
जय वर्द्धमान गुणधीर, सन्मतिदायक हो ||
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि0स्वाहा |1|
मलयागिर चन्दनसार, केसर संग घसौं |
प्रभु भवआताप निवार, पूजत हिय हुलसौं ||श्रीवीर0
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि0स्वाहा |2|
तंदुल सित-शशिसम शुद्ध, लीनो थार भरी |
तसु पुंज धरौं अविरुद्ध, पावौं शिवनगरी ||श्रीवीर0
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि0स्वाहा |3|
सुरतरु के सुमन समेत, सुमन सुमन प्यारे |
सो मनमथ भंजन हेत, पूजौं पद थारे ||श्रीवीर0
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि0स्वाहा |4|
रसरज्जत सज्जत सद्य, मज्जत थार भरी |
पद जज्जत रज्जत अद्य, भज्जत भूख अरी ||श्रीवीर0
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं नि0स्वाहा |5|
तमखंडित मंडित नेह, दीपक नेह, दीपक जोवत हौं |
तुम पदतर हे सुखगेह, भ्रमतम खोवत हौं ||श्रीवीर0
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि0स्वाहा |6|
हरिचंदन अगर कपूर, चूर सुगंध करा |
तुम पदतर खेवत भूरि, आठों कर्म जरा ||श्रीवीर0
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि0स्वाहा |7|
रितु फल कल-वर्जित लाय, कंचन भरौं |
शिव फलहित हे जिनराय, तुम ढिग भेंट धरौं ||श्रीवीर0
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि0स्वाहा |8|
जल फल वसु सजि हिम थार, तन मन मोद धरौं |
गुण गाऊँ भवदधितार, पूजत पाप हरौं ||श्रीवीर0
ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि0स्वाहा |9|
पंच कल्याणक अर्घ्यावली
मोहि राखो हो शरणा, श्री वर्द्धमान जिनरायजी मोहि राखो0 |
गरभ साढ़ सित छट्ट लियो थित, त्रिशला उर अघ हरना |
सुर सुरपति तित सेव करी नित, मैं पूजूं भवतरना ||
मोहि राखो हो शरणा, श्री वर्द्धमान जिनरायजी, मोहि राखो हो शरणा |
ॐ ह्रीं आषाढ़शुक्लाषष्ठ्यां गर्भमंगलमंडिताय श्रीमहा0अर्घ्यं नि0स्वाहा |1|
जनम चैत सित तेरस के दिन, कुण्डलपुर कन वरना |
सुरगिरि सुरगुरु पूज रचायो, मैं पूजौं भवहरना |मोहि0
ॐ ह्रीं चैत्रशुक्लात्रयोदश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीमहा0अर्घ्यं नि0स्वाहा |2|
मंगसिर असित मनोहर दशमी, ता दिन तप आचरना |
नृपति कूल घर पारन कीनों, मैं पूजौं तुम चरना |मोहि0
ॐ ह्रीं मार्गशीर्षकृष्णादशम्यां तपोमंगलमंडिताय श्रीमहा0अर्घ्यं नि0स्वाहा |3|
शुक्ल दशैं वैशाख दिवस अरि, घात चतुक क्षय करना |
केवल लहि भवि भवसर तारे, जजौं चरन सुख भरना |मोहि0
ॐ ह्रीं वैशाखशुक्लादशम्यां केवलज्ञानमंडिताय श्रीमहा0अर्घ्यं नि0स्वाहा |4|
कार्तिक श्याम अमावस शिव तिय, पावापुर तैं वरना |
गणफनिवृन्द जजें तित बहुविध, मैं पूजौं भयहरना |मोहि0
ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णाअमावस्यायां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीमहा0अर्घ्यं नि0स्वाहा |5|
जयमाला
गणधर, अशनिधर, चक्रधर, हलधर, गदाधर, वरवदा |
अरु चापधर, विद्यासुधर तिरशूलधर सेवहिं सदा ||
दुखहरन आनंदभरन तारन, तरन चरन रसाल हैं |
सुकुमाल गुण मनिमाल उन्नत भालकी जयमला हैं ||
जय त्रिशलानंदन, हरिकृतवंदन, जगदानंदन चंदवरं |
भवतापनिकंदन, तनकनमंदन, रहित सपंदन नयन धरं ||
जय केवलभानु-कला-सदनं, भवि-कोक-विकाशन कंदवनं |
जगजीत महारिपु मोहहरं, रजज्ञान-दृगावर चूर करं |1|
गर्भादिक मंगल मंडित हो, दुखदारिद को नित खंडित हो |
जग माहिं तुम्हीं सतपंडित हो, तुम ही भवभाव-विहंडित हो |2|
हरिवंश सरोजन को रवि हो, बलवंत महंत तुम्हीं कवि हो |
लहि केवलधर्म प्रकाश कियो, अबलों सोई मारग राजतियो |3|
पुनि आप तने गुण माहिं सही, सुरमग्न रहैं जितने सबही |
तिनकी वनिता गुनगावत हैं, लय-ताननिसों मनभावत हैं |4|
पुनि नाचत रंग उमंग-भरी, तुअ भक्ति विषै पग एम धरी |
झननं झननं झननं झननं, सुर लेत तहां तननं तननं |5|
घननं घननं घनघंट बजै, दृमदं दृमदं दृमदं मिरदंग सजै |
गगनांगन-गर्भगता सुगता, ततता ततता ततता अतता वितता |6|
धृगतां धृगतां गति बाजत है, सुरताल रसालजु छाजत है |
सननं सननं सननं नभ में, इकरुप अनेक जु धारि भ्रमें |7|
किन्नर सुर बीन बजावत हैं, तुमरो जस उज्जवल गावत हैं |
करताल विषै करताल धरैं, सुरताल विशाल जु नाद करैं |8|
इन आदि अनेक उछाह भरी, सुरभक्ति करें प्रभुजी तुमरी |
तुमही जग जीवन के पितु हो, तुमही बिनकारनतें हितु हो |9|
तुमही सब विघ्न विनाशन हो, तुमही निज आनंदभासन हो |
तुमही चितचिंतितदायक हो, जगमाहिं तुम्हीं सब लायक हो |10|
तुमरे पन मंगल माहिं सही, जिय उत्तम पुन्य लियो सबही |
हमतो तुमरी शरणागत हैं, तुमरे गुन में मन पागत है |11|
प्रभु मो हिय आप सदा बसिये, जबलों वसु कर्म नहीं नसिये |
तबलों तुम ध्यान हिये वरतों, तबलों श्रुतचिंतन चित्त रतो |12|
तबलों व्रत चारित चाहतु हों, तबलों शुभभाव सुगाहतु हों |
तबलों सतसंगति नित्त रहो, तबलों मम संजम चित्त गहो |13|
जबलों नहिं नाश करौं अरिको, शिव नारि वरौं समता धरिको |
यह द्यो तबलों हमको जिनजी, हम जाचतु हैं इतनी सुनजी |14|
घत्ताः- श्रीवीर जिनेशा नमित सुरेशा, नाग नरेशा भगति भरा |
वृन्दावन ध्यावै विघन नशावै, वाँछित पावै शर्म वरा ||
ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमान जिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |
दोहाः-
श्री सन्मति के जुगल पद, जो पूजैं धरि प्रीत |
वृन्दावन सो चतुर नर, लहैं मुक्ति नवनीत ||
इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
निर्वाण कांड भाषा की लिंक -
https://www.jainsaar.com/stuti-sangrah/nirvaan-kand-bhasha
श्री गौतम गणधर स्वामी पूजा की लिंक -
https://www.jainsaar.com/jain-pujan/shri-goutam-gandhar-pooja
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