Posted on 09-Oct-2020 04:42 PM
(मत्तगयन्द छन्द)
प्रानत-स्वर्ग विहाय लियो जिन, जन्म सु राजगृही-महँ आई।
श्रीसुहमित्त पिता जिनके, गुनवान महा पदमा जसु माई।।
बीस-धनू तन श्याम छवी, कछु-अंक हरी वर वंश बताई।
सो मुनिसुव्रतनाथ प्रभू कह, थापतू हो इत प्रीत लगाई।।
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्र ! अत्र अवतरत अवतरत संवौषट्! ( आह्वाननम् )
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठ: ठ:! ( स्थापनम् )
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भवत भवत वषट्! (सन्निधिकरणम्)
(गीतिका)
उज्ज्वल सु जल जिमि जस तिहारो, कनक-झारी में भरो।
जर-मरन-जामन-हरन-कारन, धार तुम पदतर करो।।
शिव-साथ करत सनाथ सुव्रतनाथ मुनि गुनमाल हैं।
तसु चरन आनंदभरन तारन-तरन विरद विशाल हैं।।
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।१।
भवताप-घायक शांति-दायक, मलय हरि घसि ढिंग धरो |
गुन-गाय शीस नमाय पूजत, विघन-ताप सबै हरो।।शिव.
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय भवाताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।२।
तंदुल अखंडित दमक शशि-सम, गमक-जुत थारी भरो।
पद-अखय-दायक मुकति-नायक, जानि पद-पूजा करो।।शिव.
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।३।
बेला चमेली रायबेली, केतकी करना सरो।
जग-जीत मनमथ-हरन लखि प्रभु, तुम निकट ढेरी करो।।शिव.
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय कामबाण- विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।४।
पकवान विविध मनोज्ञ पावन, सरस मृदु-गुन विस्तरो।
सो लेय तुम पदतर धरत ही क्षुधा-डाइन को हरो।।शिव.
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।५।
दीपक अमोलक रतन-मणिमय, तथा पावन-घृत भरो।
सो तिमिर-मोह विनाश आतम-भास कारन ज्वै धरो।।शिव.
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय मोहांधकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।६।
करपूर चंदन चूर भूर, सुगंध पावक में धरो।
तसु जरत जरत समस्त-पातक, सार निज-सुख को भरो।।शिव.
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।७।
श्रीफल अनार सु आम आदिक, पक्व-फल अति विस्तरो।
सो मोक्ष-फल के हेत लेकर, तुम चरण आगे धरो।।शिव.
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।८।
जल-गंध आदि मिलाय आठों, दरब अरघ संजो वरो।
पूजूं चरणकज भगति-जुत, जा तें जगत्-सागर तरो।।शिव.
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।९।
पंचकल्याणक
(छन्द तोटक)
तिथि दोयज सावन श्याम भयो, गरभागम मंगल मोद थयो।
हरिवृंद सची पितु-मात जजें, हम पूजत ज्यौं अघओघ भजें।।
ॐ ह्रीं श्रावणकृष्ण-द्वितीयायां गर्भमंगल-मंडिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा| ।१।
बैसाख-बदी-दशमी वरनी, जनमे तिहिं द्योस त्रिलोकधनी।
सुरमंदिर ध्याय पुरंदर ने, मुनिसुव्रतनाथ हमें शरने।।
ॐ ह्रीं वैशाखकृष्ण-दशम्यां जन्ममंगल-मंडिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।२।
तप दुद्धर श्रीधर ने गहियो, बैसाख-बदी-दशमी कहियो।
निरुपाधि समाधि सु ध्यावत हैं, हम पूजत भक्ति बढ़ावत हैं।।
ॐ ह्रीं वैशाखकृष्ण-दशम्यां तपोमंगल-मंडिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।३।
वर केवलज्ञान उद्योत किया, नवमी बैसाख वदी सुखिया।
धनि मोह निशा भनि मोख मगा, हम पूजि चहें भव सिन्धु थगा।।
ॐ ह्रीं वैशाखकृष्ण-नवम्यां ज्ञानमंगल-मंडिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।४।
वदि बारस फागुन मोक्ष गये, तिहुँलोक-शिरोमणि सिद्ध भये।
सु अनंत-गुनाकर विघ्न हरी, हम पूजत हैं मनमोद भरी।।
ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्ण-द्वादश्यां मोक्षमंगल-मंडिताय श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।५।
जयमाला
(दोहा)
मुनिगण-नायक मुक्तिपति, सूक्त व्रताकर युक्त।
भुक्ति-मुक्ति दातार लखि, वंदूं तन-मन उक्त।१।
जय केवल भान अमान धरं, मुनि स्वच्छ सरोज विकास करं।
भव संकट भंजन लायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रतदायक हैं।२।
घनघातवनं दवदीप्त भनं, भविबोध तुषातुर मेघघनं।
नित मंगलवृंद वधायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रतदायक हैं।३।
गरभादिक मंगलसार धरे, जगजीवन के दु:ख-दंद हरे।
सब तत्त्व-प्रकाशन नायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रतदायक हैं।४।
शिवमारग-मंडन तत्त्व कह्यो, गुनसार जगत्रय शर्म लह्यो।
रुज राग रु दोष मिटायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रतदायक हैं।५।
समवसृत में सुरनार सही, गुन-गावत नावत-भाल मही।
अरु नाचत भक्ति-बढ़ायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रतदायक हैं।६।
पग नूपुर की धुनि होत भनं, झननं झननं झननं झननं।
सुर-लेत अनेक रमायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रतदायक हैं।७।
घननं घननं घन घंट बजें, तननं तननं तनतान सजें।
दृम-दृम मिरदंग-बजायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रतदायक हैं।८।
छिन में लघु औ छिन थूल बनें, जुत हाव-विभाव-विलासपने।
मुख तें पुनि यों गुन गायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रतदायक हैं।९।
धृगतां धृगतां पग पावत हैं, सननं सननं सु नचावत हैं।
अति-आनंद को पुनि पायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रतदायक हैं।१०।
अपने भव को फल लेत सही, शुभ भावनतें सब पाप दही।
तिततें सुख को सब पायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रतदायक हैं।११।
इन आदि समाज अनेक तहाँ, कहि कौन सके जु विभेद यहाँ।
धनि श्री जिनचंद सुधायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रतदायक हैं।१२।
पुनि देश विहार कियो जिन ने, वृष-अमृत-वृष्टि कियो तुमने।
हमतो तुमरी शरनायक है, मुनिसुव्रत सुव्रतदायक हैं।१३।
हम पे करुणा करि देव अबै, शिवराज-समाज सु देहु सबै।
जिमि होहुँ सुखाश्रम-नायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रतदायक हैं।१४।
भवि-वृंद-तनी विनती जु यही, मुझ देहु अखेपदराज सही।
हम आन गही शरनायक हैं, मुनिसुव्रत सुव्रतदायक हैं।१५।
(घत्तानंद छन्द)
जय गुणगणधारी, शिव-हितकारी, शुद्ध-बुद्ध चिद्रूपपती।
परमानंद-दायक, दास-सहायक, मुनिसुव्रत जयवंत जती।१६।
ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।
(दोहा)
श्री मुनिसुव्रत के चरण, जो पूजें अभिनंद।
सो सुरनर सुख भोगके, पावें सहजानंद।।
।। इत्याशीर्वाद: पुष्पाजंलिं क्षिपामि।।
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