Posted on 22-Jan-2021 08:48 PM
पुष्पदन्त भगवन्त सन्त सु जपंत तंत गुन |
महिमावन्त महन्त कन्त शिवतिय रमन्त मुन ||
काकन्दीपुर जन्म पिता सुग्रीव रमासुत |
श्वेत वरन मनहरन तुम्हैं थापौं त्रिवार नुत ||
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् |
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः |
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् |
हिमवन गिरिगत गंगाजल भर, कंचन भृंग भराय |
करम कलंक निवारनकारन, जजौं, तुम्हारे पाय ||
मेरी अरज सुनीजे, पुष्पदन्त जिनराय जी, मेरी अरज सुनीजे ||
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि0स्वाहा |1|
बावन चन्दन कदलीनंदन, कुंकुम संग घसाय |
चरचौं चरन हरन मिथ्यातम, वीतराग गुण गाय ||मेरी0
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि0स्वाहा |2|
शालि अखंडित सौरभ मंडित, शशिसम द्युति दमकाय |
ताको पुञ्ज धरौं चरननढिग, देहु अखय पदराय ||मेरी0
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि0स्वाहा |3|
सुमन सुमनसम परिमलमंडित, गुंजत अलिगन आय |
ब्रह्म-पुत्र मद भंजन कारन, जजौं तुम्हारे पाय ||मेरी0
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि0स्वाहा |4|
घेवर बावर फेनी गोंजा, मोदन मोदक लाय |
छुधा वेदनि रोग हरन कों, भेंट धरौं गुण गाय ||मेरी0
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं नि0स्वाहा |5|
वाति कपूर दीप कंचनमय, उज्ज्वल ज्योति जगाय |
तिमिर मोह नाशक तुमको लखि, धरौं निकट उमगाय ||मेरी0
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि0स्वाहा |6|
दशवर गंध धनंजय के संग, खेवत हौं गुन गाय |
अष्टकर्म ये दुष्ट जरें सो, धूम धूम सु उड़ाय ||मेरी0
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि0स्वाहा |7|
श्रीफल पूगी शुचिर भट, दाड़िम आम मंगाय |
तासों तुम पद पद्म जजत हौं, विघन सघन मिट जाय ||मेरी0
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि0स्वाहा |8|
जल फल सकल मिलाय मनोहर, मनवचतन हुलसाय |
तुम पद पूजौं प्रीति लाय के, जय जय त्रिभुवनराय ||मेरी0
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि0स्वाहा |9|
पंच कल्याणक अर्घ्यावली
नवमी तिथि कारी फागुन धारी, गरभ मांहिं थिति देवा जी |
तजि आरण थानं कृपानिधानं, करत सची तित सेवा जी ||
रतनन की धारा परम उदारा, परी व्योमत साराजी |
मैं पूजौं ध्यावौं भगति बढ़ावौं, करो मोहि भव पारा जी ||
ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णानवम्यां गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय अर्घ्यं नि0 |1|
मगसिर सितपच्छंतरिवा स्वच्छं, जनमे तीरथनाथा जी |
तब ही चवभेवा निरजर येवा, आय नये निज माथा जी ||
सुरगिर नहवाये, मंगल गाये, पूजे प्रीति लगाई जी |
मैं पूजौं ध्यावौं भगत बढ़ावौं, निजनिधि हेतु सुहाई जी ||
ॐ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्ला प्रतिपदायां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय अर्घ्यं नि0 |2|
सित मंगसिर मासा तिथि सुखरासा, एकम के दिन धारा जी |
तप आतमज्ञानी आकुलहानी, मौन सहित अविकारा जी ||
सुरमित्र सुदानी के घर आनी, गो-पय पारन कीना है |
तिनको मैं वन्दौं पाप निकंदौं, जो समता रस भीना है ||
ॐ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्ल प्रतिपदायां तपोमंगलमण्डिताय श्रीपुष्प0 अर्घ्यं नि0 |3|
सितकार्तिक गाये दोइज धाये, घातिकरम परचंडा जी |
केवल परकाशे भ्रम तम नाशे, सकल सार सुख मंडा जी ||
गनराज अठासी आनंदभासी, समवसरण वृषदाता जी |
हरि पूजन आयो शीश नमायो, हम पूजें जगत्राता जी ||
ॐ ह्रीं कार्तिकशुक्ल द्वितीयायां ज्ञानमंगलमण्डिताय श्रीपुष्प0 अर्घ्यं नि0 |4|
आसित सित सारा आठैं धारा, गिरिसमेद निरवाना जी |
गुन अष्ट प्रकारा अनुपम धारा, जय जय कृपा निधाना जी ||
तित इन्द्र सु आयौ, पूज रचायौ,चिह्न तहां करि दीना है |
मैं पूजत हौं गुन धरत महीसों, तुमरे रस में भीना है ||
ॐ ह्री आश्विन शुक्लाऽष्टम्यां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीपुष्प0 अर्घ्यं नि0 |5|
जयमाला
लच्छन मगर सुश्वेत तन तुंग धनुश शत एक |
सुरनर वंदित मुकतपति, नमौं तुम्हें शिर टेक |1|
पुहुपरदन गुनवदन है, सागर तोय समान |
क्यों कर कर अंजुलिनिकर, करिये तासु प्रमान |2|
(छंद तामरस)
पुष्पदन्त जयवन्त नमस्ते, पुण्य तीर्थंकर सन्त नमस्ते |
ज्ञान ध्यान अमलान नमस्ते, चिद्विलास सुख ज्ञान नमस्ते |3|
भवभयभंजन देव नमस्ते, मुनिगनकृत पदसेव नमस्ते |
मिथ्या निशि दिन इन्द्र नमस्ते, ज्ञानपयोदधि चन्द्र नमस्ते |4|
भवदुःख तरु निःकन्द नमस्ते, राग दोष मद दहन नमस्ते |
विश्वेश्वर गुनभूर नमस्ते, धर्म सुधार संपूर नमस्ते |5|
केवल ब्रह्म प्रकाश नमस्ते, सकल चराचरभास नमस्ते |
विघ्नमहीधर विज्जु नमस्ते, जय ऊरधगति रिज्जु नमस्ते |6|
जयमकरा कृतपाद नमस्ते, मकर ध्वज मदवाद नमस्ते |
कर्मभर्म परिहार नमस्ते, जय जय अधम उधार नमस्ते |7|
दयाधुरंधर धीर नमस्ते, जय जय गुन गम्भीर नमस्ते |
मुक्ति रमनि पति वीर नमस्ते, हर्ता भवभय पीर नमस्ते |8|
व्यय उत्पति थितिधार नमस्ते, निजअधार अविकार नमस्ते |
भव्य भवोदधितार नमस्ते, वृन्दावन निस्तार नमस्ते |9|
(छंद घतानन्द)
जय जय जिनदेवं हरिकृतसेवं, परम धरमधन धारी जी |
मैं पूजौं ध्यावौं गुनगन गावौं, मेटो विथा हमारी जी |10|
ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |
छंद मदावलिप्तकपोल
पुहुपदंत पद सन्त, जजें जो मनवचकाई |
नाचें गावें भगति करें, शुभ परनति लाई ||
सो पावें सुख सर्व, इन्द्र अहमिंद तनों वर |
अनुक्रमतें निरवान, लहें निहचै प्रमोद धर ||
इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
0 टिप्पणियाँ