Posted on 22-Dec-2020 07:58 PM
जय संभव जिनचन्द्र सदा हरिगनचकोरनुत |
जयसेना जसु मातु जैति राजा जितारिसुत ||
तजि ग्रीवक लिय जन्म नगर सावत्री आई |
सो भव भंजन हेत भगत पर होहु सहाई |1|
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् |
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः |
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् |
अष्टक
मुनि मन सम उज्ज्ल जल लेकर, कनक कटोरी में धारा |
जनम जरा मृतु नाश करन कों, तुम पदतर ढारों धारा ||
संभव जिन के चरन चरचतें, सब आकुलता मिट जावे |
निज निधि ज्ञान दरश सुख वीरज, निराबाध भविजन सुख पावे ||
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि0स्वाहा |1|
तपत दाह को कन्दन चंदन मलयागिरि को घसि लायो |
जगवंदन भौफंदन खंदन समरथ लखि शरनै आयो || संभव.
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि0स्वाहा |2|
देवजीर सुखदास कमलवासित, सित सुन्दर अनियारे |
पुंज धरौं जिन चरनन आगे, लहौं अखयपद कों प्यारे ||सं0
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि0स्वाहा |3|
कमल केतकी बेल चमेली, चंपा जूही सुमन वरा |
ता सों पूजत श्रीपति तुम पद, मदन बान विध्वंस करा ||सं0
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्राय कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं नि0स्वाहा |4|
घेवर बावर मोदन मोदक, खाजा ताजा सरस बना |
तासों पद श्रीपति को पूजत, क्षुधा रोग ततकाल हना ||सं0
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं नि0स्वाहा |5|
घटपट परकाशक भ्रमतम नाशक, तुमढिग ऐसो दीप धरौं |
केवल जोत उदोत होहु मोहि, यही सदा अरदास करौं ||सं0
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि0स्वाहा |6|
अगर तगर कृषनागर श्रीखंडादिक चूर हुतासन में |
खेवत हौं तुम चरन जलज ढिग, कर्म छार जरिह्रैछन में ||सं0
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि0स्वाहा |7|
श्रीफल लौंग बदाम छुहारा, एला पिस्ता दाख रमैं |
लै फल प्रासुक पूजौं तुम पद देहु अखयपद नाथ हमैं ||सं0
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि0स्वाहा |8|
जल चंदन तंदुल प्रसून चरु, दीप धूप फल अर्घ किया |
तुमको अरपौं भाव भगतिधर, जै जै जै शिव रमनि पिया ||सं0
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि0स्वाहा |9|
पंच कल्याणक अर्घ्यावली
माता गर्भ विषै जिन आय, फागुन सित आठैं सुखदाय |
सेयो सुर-तिय छप्पन वृन्द, नाना विधि मैं जजौं जिनन्द ||
ॐ ह्रीं फाल्गुन शुक्लाष्टम्यां गर्भमंगल प्राप्ताय श्रीसंभव0 अर्घ्यं नि0 |1|
कार्तिक सित पूनम तिथि जान, तीन ज्ञान जुत जनम प्रमाण |
धरि गिरि राज जजे सुरराज, तिन्हें जजौं मैं निज हित काज ||
ॐ ह्रीं कार्तिक शुक्ला पूर्णिमायां जन्ममंगल प्राप्ताय श्रीसंभव0 अर्घ्यं नि0 |2|
मगसिर सित पून्यों तप धार, सकल संग तजि जिन अनगार |
ध्यानादिक बल जीते कर्म, चचौं चरन देहु शिवशर्म ||
ॐ ह्रीं मार्गशीर्षपूर्णिमायां तपकल्याणक प्राप्ताय श्रीसंभव0 अर्घ्यं नि0 |3|
कार्तिक कलि तिथि चौथ महान, घाति घात लिय केवल ज्ञान |
समवशरनमहँ तिष्ठे देव, तुरिय चिह्न चचौं वसुभेव ||
ॐ ह्रीं कार्तिककृष्णाचतुर्थीदिने ज्ञानसाम्राज्य मंगलप्राप्ताय श्रीसंभव0 अर्घ्यं नि0 |4|
चैतशुक्ल तिथि षष्ठी चोख, गिरिसम्मेदतें लीनों मोख |
चार शतक धनु अवगाहना, जजौं तास पद थुति कर घना ||
ॐ ह्रीं चैत्र शुक्ला षष्ठीदिने मोक्षकल्याणक प्राप्ताय श्रीसंभव0 अर्घ्यं नि0 |5|
जयमाला
दोहा
श्री संभव के गुन अगम, कहि न सकत सुरराज |
मैं वश भक्ति सु धीट ह्वे, विनवौं निजहित काज |1|
छंद
जिनेश महेश गुणेश गरिष्ट, सुरासुर सेवित इष्ट वरिष्ट |
धरे वृषचक्र करे अघ चूर, अतत्व छपातम मर्द्दन सूर |2|
सुतत्त्व प्रकाशन शासन शुद्ध, विवेक विराग बढ़ावन बुद्ध |
दया तरु तर्पन मेघ महान, कुनय गिरि गंजन वज्र समान |3|
सुगर्भरु जन्म महोत्सव मांहि, जगज्जन आनन्दकन्द लहाहिं |
सुपूरब साठहि लच्छ जु आय, कुमार चतुर्थम अंश रमाय |4|
चवालिस लाख सुपूरब एव, निकंटक राज कियो जिनदेव |
तजे कछु कारन पाय सु राज, धरे व्रत संजम आतम काज |5|
सुरेन्द्र नरेन्द्र दियो पयदान, धरे वन में निज आतम ध्यान |
किया चव घातिय कर्म विनाश, लयो तब केवलज्ञान प्रकाश |6|
भई समवसृत ठाट अपार, खिरै धुनि झेलहिं श्री गनधार |
भने षट्-द्रव्य तने विसतार, चहूँ अनुयोग अनेक प्रकार |7|
कहें पुनि त्रेपन भाव विशेष, उभै विधि हैं उपशम्य जुभेष |
सुसम्यकचारित्र भेद-स्वरुप, भये इमि छायक नौ सु अनूप |8|
दृगौ बुधि सम्यक चारितदान, सुलाभ रु भोगोपभोगोप्रमाण |
सुवीरज संजुत ए नव जान, अठार छयोपशम इम प्रमान |9|
मति श्रुत औधि उभै विधि जान, मनःपरजै चखु और प्रमान |
अचक्खु तथा विधि दान रु लाभ, सुभोगोपभोग रु वीरजसाभ |10|
व्रताव्रत संजम और सु धार, धरे गुन सम्यक चारित भार |
भए वसु एक समापत येह, इक्कीस उदीक सुनो अब जेह |11|
चहुँ गति चारि कषाय तिवेद, छह लेश्या और अज्ञान विभेद |
असंजम भाव लखो इस माहिं, असिद्धित और अतत्त कहाहिं |12|
भये इकबीस सुनो अब और, सुभेदत्रियं पारिनामिक ठौर |
सुजीवित भव्यत और अभव्व, तरेपन एम भने जिन सव्व |13|
तिन्हो मँह केतक त्यागन जोग, कितेक गहे तें मिटे भव रोग |
कह्यो इन आदि लह्यो फिर मोख, अनन्त गुनातम मंडित चोख |14|
जजौं तुम पाय जपौं गुनसार, प्रभु हमको भवसागर तार |
गही शरनागत दीनदयाल, विलम्ब करो मति हे गुनमाल |15|
जै जै भव भंजन जन मन रंजन, दया धुरंधर कुमतिहरा |
वृन्दावन वंदत मन आनन्दित, दीजै आतम ज्ञान वरा ||
ॐ ह्रीं श्रीसंभवनाथ जिनेन्द्राय महार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |16|
छंद
जो बांचे यह पाठ सरस संभव तनो |
सो पावे धनधान्य सरस सम्पति घनो ||
सकल पाप छै जाय सुजस जग में बढ़े |
पूजत सुर पद होय अनुक्रम शिव चढ़े |17|
इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
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