Posted on 01-Feb-2021 09:02 PM
शीतलनाथ नमौं धरि हाथ, सुमाथ जिन्हों भव गाथ मिटाये |
अच्युततें च्युत मात सुनन्द के, नन्द भये पुरभद्दल आये ||
वंश इक्ष्वाकु कियो जिन भूषित, भव्यन को भव पार लगाये |
ऐसे कृपानिधि के पद पंकज, थापतु हौं हिय हर्ष बढ़ाये ||
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् |
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः |
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् |
देवापगा सु वरवारि विशुद्ध लायो,
भृंगार हेम भरि भक्ति हिये बढ़ायो |
रागादि दोष मल मर्दन हेतु येवा,
चर्चौं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा ||
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि0स्वाहा |1|
श्रीखंड सार वर कुंकुम गारि लीनों |
कंसंग स्वच्छ घिसि भक्ति हिये धरीनों ||रागा0
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि0स्वाहा |2|
मुक्ता-समान सित तंदुल सार राजे |
धारंतू पुंज कलि कुंज समस्त भाजें |रागा0
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि0स्वाहा |3|
श्री केतकी प्रमुख पुष्प अदोष लायो |
नौरंग जंग करि भृंग सुरंग पायो ||रागा0
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि0स्वाहा |4|
नैवेद्य सार चरु चारु संवारि लायो |
जांबूनद प्रभृति भाजन शीश नायो ||
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं नि0स्वाहा |5|
स्नेह प्रपूरित सुदीपक जोति राजे |
स्नेह प्रपूरित हिये जजतेऽघ भाजे ||रागा0
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि0स्वाहा |6|
कृष्णागरू प्रमुख गंध हुताश माहीं |
खेवौं तवाग्र वसुकर्म जरंत जाही ||रागा0
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि0स्वाहा |7|
निम्बाम्र कर्कटि दाड़िम आदि धारा |
सौवर्ण गंध फल सार सुपक्व प्यारा ||रागा0
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि0स्वाहा |8|
कंश्री फलादि वसु प्रासुक द्रव्य साजे |
नाचे रचे मचत बज्जत सज्ज साजे ||रागा0
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि0स्वाहा |9|
पंच कल्याणक अर्घ्यावली
आठैं वदी चैत सुगर्भ मांही, आये प्रभू मंगलरुप थाहीं |
सेवै सची मातु अनेक भेवा, चर्चौं सदा शीतलनाथ देवा ||
ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णाऽष्टम्यां गर्भमंगलप्राप्तये श्रीशीतल0 अर्घ्यं नि0 |1|
श्री माघ की द्वादशि श्याम जायो, भूलोक में मंगल सार आयो |
शैलेन्द्र पै इन्द्र फनिन्द जज्जे, मैं ध्यान धारौं भवदुख भज्जे ||
ॐ ह्रीं माघकृष्णा द्वादश्यां जन्ममंगलप्राप्तये श्रीशीतल0 अर्घ्यं नि0 |2|
श्री माघ की द्वादशि श्याम जानो, वैराग्य पायो भवभाव हानो |
ध्यायो चिदानन्द निवार मोहा, चर्चौं सदा चर्न निवार कोहा ||
ॐ ह्रीं माघकृष्णद्वादश्यां निःक्रमणमहोत्सवमण्डिताय श्रीशीतल0 अर्घ्यं नि0 |3|
चतुर्दशी पौष वदी सुहायो, ताही दिना केवल लब्धि पायो |
शोभै समोसृत्य बखानि धर्मं, चचौं सदा शीतल पर्म शर्मं ||
ॐ ह्रीं पौषकृष्णचतुर्दश्यां केवलज्ञानमंडिताय श्रीशीतल0 अर्घ्यं नि0 |4|
कुंवारकी आठैं शुद्ध बुद्धा, भये महा मोक्ष सरुप शुद्धा |
सम्मेदतें शीतलनाथ स्वामी, गुनाकरं तासु पदं नमामी ||
ॐ ह्रीं आश्विनशुक्लाऽष्टम्यां मोक्षमंगलप्राप्तये श्रीशीतल0 अर्घ्यं नि0 |5|
जयमाला
आप अनंत गुनाकर राजे, वस्तुविकाशन भानु समाजे |
मैं यह जानि गही शरना है, मोह महारिपु को हरना है |1|
हेमवरन तन तुंग धनु नब्बे अति अभिराम |
सुर तरु अंक निहारि पद, पुनपुन करौं प्रणाम |2|
जय शीतलनाथ जिनन्द वरं, भवदुख दवानल मेघझरं |
दुख भुभृतभंजन वज्रसमं, भव सागर नागर पोतपमं |3|
कुह मान मयागद लोभ हरं, अरि विघ्नगयंद मृगिंद वरं |
वृष वारिदवृष्टन सृष्टिहितू, परदृष्टि विनाशन सुष्टु पितू |4|
समवस्रत संजुत राजतु हो, उपमा अभिराम विराजतु हो |
वर बारह भेद सभाथित को, तित धर्म बखानि कियो हित को |5|
पहले महि श्री गनराज रजैं, दुतिये महि कल्पसुरी जु सजैं |
त्रितिये गणनी गुन भूरि धरैं, चवथे तिय जोतिष जोति भरैं |6|
तिय-विंतरनी पन में गनिये, छह में भुवनेसुर ति भनिये |
भुवनेश दशों थित सत्तम हैं, वसु में वसुविंतर उत्तम हैं |7|
नव में नभजोतिष पंच भरे, दश में दिविदेव समस्त खरे |
नरवृन्द इकादश में निवसें, अरु बारह में पशु सर्व लसें |8|
तजि वैर, प्रमोद धरें सब ही, समता रस मग्न लसें तब ही |
धुनि दिव्य सुनें तजि मोहमलं, गनराज असी धरि ज्ञानबलं |9|
सबके हित तत्त्व बखान करें, करुना-मन-रंजित शर्म भरें |
वरने षटद्रव्य तनें जितने, वर भेद विराजतु हैं तितने |10|
पुनि ध्यान उभै शिवहेत मुना, इक धर्म दुती सुकलं अधुना |
तित धर्म सुध्यान तणों गनियो, दशभेद लखे भ्रम को हनियो |11|
पहलो अरि नाश अपाय सही, दुतियो जिन बैन उपाय गही |
त्रिति जीवविचे निजध्यावन है, चवथो सु अजीव रमावन है |12|
पनमों सु उदै बलटारन है, छहमों अरिरागनिवारन है |
भव त्यागन चिंतन सप्तम है, वसुमों जितलोभ न आतम है |13|
नवमों जिनकी धुनि सीस धरे, दशमों जिनभाषित हेत करे |
इमि धर्म तणों दश भेद भन्यो, पुनि शुक्लतणो चदु येम गन्यो |14|
सुपृथक्त वितर्क विचार सही, सुइकत्ववितर्क विचार गही |
पुनि सूक्ष्मक्रिया प्रतिपात कही, विपरीत किया निरवृत्त लही |15|
इन आदिक सब प्रकाश कियो, भवि जीवनको शिव स्वर्ग दियो |
पुनि मोच्छ विहार कियो जिनजी, सुखसागर मग्न चिरंगुनजी |16|
अब मैं शरना पकरी तुमरी, सुधि लेहु दयानिधि जी हमरी |
भव व्याधि निवार करो अब ही, मति ढील करो सुख द्यो सब ही |17|
शीतल जिन ध्याऊं भगति बढ़ाऊं, ज्यों रतनत्रय निधि पाऊं |
भवदंद नशाऊं शिवथल जाऊं, फेर न भववन में आऊं |18|
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथ जिनेन्द्राय पूर्णार्घं नि0स्वाहा |9|
दिढ़रथ सुत श्रीमान् पंचकल्याणक धारी,
तिनपद जुगपद्म जो जजै भक्तिधारी |
सह सुख धन धान्यं, दीर्घ सौभाग्य पावे,
अनुक्रम अरि दाहै, मोक्ष को सो सिधावै ||
इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
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