Posted on 25-Sep-2020 04:17 PM
कविवर मनरंगलाल जी
है नगर भद्दिल भूप दृढरथ सुष्ठु नंदा ता त्रिया,
तवि अचुत-दिवि अभिराम शीतलनाथ सुत ताके प्रिया |
इक्ष्वाकुवंशी अंक श्री तरु हेम-वरण शरीर है,
धनु नवे उन्नत पूर्व लख इक आयु सुभग परी रहे ||
(सोरठा)
सो शीतल सुख-कंद, तजि परिग्रह शिव-लोक गै |
छूट गयो गज-धंध, करियत तौ आह्वाहन अब ||
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट आह्वाह्न्म |
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ: ठ: ठ: स्थापनम |
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट सन्निधिकरणम |
अष्टक
नित तृषा पीड़ा करत अधिकी दाव अब के पाइयो
शुभ कुम्भ कंचन जडित गंगा-नीर भरि ले आइयो ||
तुम नाथ शीतल करो शीतल मोहि भव की ताप सो,
मैं जजों युग पद जोरि करि मो काज सरसी आप सों ||
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा |
जाकी महक सों नीम आदिक होत चन्दन जानिये |
सो सूक्ष्म घिस के मिला केसर भरि कटोरा आनिये ||
तुम नाथ…
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा |
मैं जीव संसारी भयो अरु मर्यो ताको पार ना |
प्रभु पास अक्षत ल्याल धारे अखय-पद के कारना ||
तुम नाथ…
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान निर्वपामीति स्वाहा ।
इन मदन मोरी सकति थोरी रह्यो सब जग छायके |
ता नाश कारन सुमन ल्यायो महाशुद्ध चुनायके ||
तुम नाथ…
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।
क्षुध-रोग मेरे पिंड लागो देत मांगे ना धरी |
ताके नसावन काज स्वामी चरू लै आगे धरी ||
तुम नाथ…
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यम निर्वपामीति स्वाहा ।
अज्ञान तिमिर महान अन्धकार करि राखो सबै |
निज-पद सुभेद पिछान कारण दीप लाल्यो हूँ अबै ||
तुम नाथ…
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।
जे अष्ट कर्म महान अतिबल घेरि मो चेरा कियो |
तिन केर नाश विचारि के ले धुप प्रभु ढिग क्षेपियो ||
तुम नाथ…
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।
शुभ मोक्ष मिलन अभिलाष मेरे रहत कब की नाथ जू |
फल मिष्ट नाना भांति सुधरे ल्याइयौ निज हाथ जू ||
तुम नाथ…
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।
जल गंध अक्षत फूल चरु दीपक सुधूप कहि महा |
फल ल्याय सुंदर अरघ कीन्हो दोष सो वर्जित कहा ||
तुम नाथ…
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
पंचकल्याणक
चैत वदी दिन आठ, गर्भावतार लेत भये स्वामी |
सुर नर असुरन जानी, जजहूँ शीतल प्रभु नामी ||
ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णाष्टम्यां गर्भमंगलमंडिताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
माघ वदी द्वादशी को, जन्मे भगवान सकल सुखकारी |
मति श्रुति अवधि विराजे, पूजों जिन-चरण हितकारी ||
ॐ ह्रीं माघकृष्णद्वादश्यां जन्ममंगलमंडिताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
द्वादशी माघ वदी में, परिग्रह तजि वन बसे जाई |
पूजत तहां सुरासुर, हम यहाँ पूजत गुण गाई ||
ॐ ह्रीं माघकृष्णद्वादश्यां तपोमंगलमंडिताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
चौदशि पूस वदी में, जग-गुरु केवल पाय भये ज्ञानी |
सो मूरति मनमानी, मैं पूजों जिन-चरण सुख-खानी ||
ॐ ह्रीं पौषकृष्णचतुर्दशयां ज्ञानमंगलमंडिताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
आश्विन सुदी अष्टमि दिन, मुक्ति पधारे समेदगिरि सेती |
पूजा करत तिहारी, नसत उपाधि जगत की जेती ||
ॐ ह्रीं आश्विनशुक्लाष्टम्यां मोक्षमंगलमंडिताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।
जयमाला
जय शीतल जिनवर, परम धरमधर, छवि के मन्दिर, शिव-भरता |
जय पुत्र सुनन्दा के गुण-वृंदा, सुख के कंदा, दुःख हरता ||
जय नासादृष्टि, हो परमेष्ठी, तुम पदनेष्टि, अलख भये |
जय तपो चरन मां, रहत चरन मां, सुआचरण मां, कलुष भये ||
जय सुनन्दा के नंदा तिहारी कथा
भाषी को पार पावे कहावे यथा |
नाथ! तेरे कभी होत भव-रोग ना
इष्ट-वियोग अनिष्ट-संयोग ना ||
अग्नि के कुंड में वल्लभा राम की
नाम तेरे बची सो सती काम की | नाथ…
द्रोपदी चीर बाढो तिहारी सही
देव जानी सबों में सुलज्जा रही | नाथ…
कुष्ठ राखो न श्रीपाल को जो महा
अब्धि से काढ लीनो सिताबी तहां | नाथ…
अंजना कोटि फांसी गिरो जो हतो
औ सहाई तहां तो बिनो को हतो | नाथ…
शैल फूटो, गिरै अंजनीपूत के
चोट जाके लगी ना तिहारै तके | नाथ…
कूदीयो शीघ्र ही नाम तो गायके
कृष्ण काली नथो कुंड में जायके | नाथ…
पाण्डवा जे घिरे थे लखागार में
राह दीन्हीं तू महाप्यार में | नाथ…
सेठ को शूलिका पै धरो देखके
कीन्ह सिंहासन आपनो लेखके | नाथ…
जो गिनाये इन्हें आदि देके सबै
पाद परसाद तैं वे सुखारी सबै | नाथ…
वार मेरी प्रभु देर किन्हीं कहा
कीजिये दृष्टि दया की मौ पे अहा | नाथ…
धन्य तू धन्य तू धन्य तू मैंनहा
जो महा पंचमो ज्ञान नीके लहा | नाथ…
कोटि तीरथ हैं तेरे पदों के तले
रोज ध्यावें मुनि सो बतावें भले | नाथ…
जानिके यों भली भांति ध्याऊँ तुझे
भक्ति पाऊँ यही देव दीजे मुझे | नाथ…
गाथा
आपद सब दीजे भर झोकि यह पढत सुनत जयमाल
हो पुनीत करण अरु जिव्हा वरते आनन्द जाल |
पहुंचे जंह कबहूँ पहुंच नहीं नहिं पाई सो पावे हाल
नहीं भयो कभी सो होय सबेरा भाषत मनरंगलाल ||
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय महार्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ||
(सोरठा)
भो शीतल भगवान, तो पद पक्षी जगत में |
हैं जेते परवान, पक्ष रहे तिन पर बनी ||
इत्याशीर्वाद: पुष्पांजलि क्षिपेत
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