Posted on 09-Feb-2021 08:07 PM
सहस्रार दिवि त्यागि, नगर कम्पिला जनम लिय |
कृत धर्मा नृपनन्द, मातु जयसेन धर्मप्रिय ||
तीन लोक वर नन्द, विमल जिन विमल विमलकर |
थापौं चरन सरोज, जजनके हेतु भावधर ||
ॐ ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् |
ॐ ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः |
ॐ ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् |
कंचन झारी धारि, पदम द्रहको नीर ले |
तृषा रोग निरवारि, विमल विमलगुन पूजिये ||
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं नि0स्वाहा |1|
मलयागर करपूर, देववल्लभा संग घसि |
हरि मिथ्यातमभूर, विमल विमलगुन जजतु हौं ||
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनं नि0स्वाहा |2|
वासमती सुखदास, स्वेत निशपति को हँसै |
पूरे वाँछित आस, विमल विमलगुन जजत ही ||
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् नि0स्वाहा |3|
पारिजात मंदार, संतानक सुरतरु जनित |
जजौं सुमन भरि थार, विमल विमलगुन मदनहर ||
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं नि0स्वाहा |4|
नव्य गव्य रसपूर, सुवरण थाल भरायके |
छुधावेदनी चूर, जजौं विमलपद विमलगुन ||
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं नि0स्वाहा |5|
माणिक दीप अखण्ड, गो छाई वर गो दशों |
हरो मोहतम चंड, विमल विमलमति के धनी ||
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि0स्वाहा |6|
अगरु तगर घनसार, देवदारु कर चूर वर |
खेवौं वसु अरि जार, विमल विमल पद पद्म ढिग ||
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं नि0स्वाहा |7|
श्रीफल सेव अनार, मधुर रसीले पावने |
जजौं विमलपद सार, विघ्न हरें शिवफल करें ||
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं नि0स्वाहा |8|
आठों दरब संवार, मनसुखदायक पावने |
जजौं अरघ भर थार, विमल विमल शिवतिय रमण ||
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं नि0स्वाहा |9|
पंच कल्याणक अर्घ्यावली
गरभ जेठ वदी दशमी भनो, परम पावन सो दिन शोभनो |
करत सेव सची जननी तणी, हम जजें पदपद्म शिरौमणी ||
ॐ ह्रीं ज्येष्ठकृष्णादशम्यां गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं0 |1|
शुकलमाघ तुरी तिथि जानिये, जनम मंगल तादिन मानिये |
हरि तबै गिरिराज विषै जजे, हम समर्चत आनन्द को सजे ||
ॐ ह्रीं माघशुक्लचतुर्थ्यां जन्ममंगलमण्डितायश्रीविमल0 अर्घ्यं नि0 |2|
तप धरे सित माघ तुरी भली, निज सुधातम ध्यावत हैं रली |
हरि फनेश नरेश जजें तहां, हम जजें नित आनन्द सों इहां ||
ॐ ह्रीं माघशुक्लचतुर्थ्यां तपःकल्याणप्राप्ताय श्रीविमल0 अर्घ्यं नि0 |3|
विमल माघरसी हनि घातिया, विमलबोध लयो सब भासिया |
विमल अर्घ चढ़ाय जजौं अबै, विमल आनन्द देहु हमें सबै ||
ॐ ह्रीं माघशुक्लषष्ठयां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीविमल0 अर्घ्यं नि0 |4|
भ्रमरसाढ़रसी अति पावनो विमल सिद्ध भये मन भावनो |
गिरसमेद हरी तित पूजिया, हम जजैं इत हर्ष धरैं हिया ||
ॐ ह्रीं आषाढ़कृष्णषष्ठयां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीविमल0 अर्घ्यं नि0 |5|
जयमाला
दोहा
गहन चहत उड़गन गगन, छिति तिथि के छहँ जेम |
तिमि गुन-वरनन वरनन, माँहि होय तब केम |1|
साठ धुनष तन तुंग है, हेम वरन अभिराम |
वर बराह पद अंक लखि, पुनि पुनि करौं प्रनाम |2|
(छंद: तोटक वर्ण :१२)
जय केवलब्रह्म अनन्तगुनी, तुम ध्यावत शेष महेश मुनी |
परमातम पूरन पाप हनी, चितचिंततदायक इष्ट धनी |3|
भव आतपध्वंसन इन्दुकरं, वर सार रसायन शर्मभरं |
सब जन्म जरा मृत दाघहरं, शरनागत पालन नाथ वरं |4|
नित सन्त तुम्हें इन नामनितें, चित चिन्तन हैं गुनमान नितैं |
अमलं अचलं अडलं अतुलं, अरलं अछलं अथलं अकुलं |5|
अजरं अमरं अहरं अडरं, अपरं अभरं अशरं अनरं |
अमलीन अछीन अरीन हने, अमतं अगतं अरतं अघने |6|
अछुधा अतृषा अभयातम हो, अमदा अगदा अवदातम हो |
अविरुद्ध अक्रुद्ध अमानधुना, अतलं असलं अनअन्त गुना |7|
अरसं सरसं अकलं सकलं, अवचं सवचं अमचं सबलं |
इन आदि अनेक प्रकार सही, तुमको जिन सन्त जपें नित ही |8|
अब मैं तुमरी शरना पकरी, दुख दूर करो प्रभुजी हमरी |
हम कष्ट सहे भवकानन में, कुनिगोद तथा थल आनन में |9|
तित जानम मर्न सहे जितने, कहि केम सकें तुम सों तितने |
सुमुहूरत अन्तरमाहिं धरे, छह त्रै त्रय छः छहकाय खरे |10|
छिति वह्नि वयारिक साधरनं, लघु थूल विभेदनिसों भरनं |
परतेक वनस्पति ग्यार भये, छहजार दुवादश भेद लये |11|
सब द्वै त्रय भू षट छः सु भया, इक इन्द्रिय की परजाय लया |
जुग इन्द्रिय काय असी गहियो, तिय इन्द्रिय साठनि में रहियो |12|
चतुरिंद्रिय चालिस देह धरा, पनइन्द्रिय के चवबीस वरा |
सब ये तन धार तहाँ सहियो, दुखघोर चितारित जात हियो |13|
अब मो अरदास हिये धरिये, दुखदंद सबै अब ही हरिये |
मनवांछित कारज सिद्ध करो, सुखसार सबै घर रिद्ध भरो |14|
(घत्तानन्द)
जय विमलजिनेशा नुतनाकेशा, नागेशा नरईश सदा |
भवताप अशेषा, हरन निशेशा, दाता चिन्तित शर्म सदा |15|
ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |
दोहा
श्रीमत विमल जिनेशपद, जो पूजें मनलाय |
पूरें वांछित आश तसु, मैं पूजौं गुनगाय ||
इत्याशीर्वादः (पुष्पांजलिं क्षिपेत्)
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