सुगंध दशमी पूजा



सुगंध दशमी पूजा


(अडिल्ल छंद)

सुगंध दशमी को पर्व भादवा शुक्ल में ।
सब इन्द्रादिक देव आय मधि लोक में ॥
जिन अकृत्रिम धाम धूप खेवै तहां ।
हम भी पूजत आव्हानन करिके यहां ॥

ॐ ह्रीं सुगंध दशमी व्रतोद्योतनाय श्री जिन बिम्ब समूह अवतर अवतर संवौषट्‌ आह्वाननं ।
ॐ ह्रीं सुगंध दशमी व्रतोद्योतनाय श्री जिन बिम्ब समूहअत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं |
ॐ ह्रीं सुगंध दशमी व्रतोद्योतनाय श्री जिन बिम्ब समूहअत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् |

 

(चाल-जोगीरासा)

पद्मादिक द्रह को जल उत्तम मणि भ्रंगार भरावे |
जनम जरा मृत्यु नाशन कारण त्रय धारा जु ढरावै ॥
पर्व सुगंध दशै दिन जिनवर पूजे अति हरषाई ।
सुगंध देह तीर्थंकर पद की पावैं शिव सुखदाई ॥ टेक॥

ॐ ह्रीं सुगंध दशमी व्रतोद्योतनाय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।

 

मलयागिर चंदन संग केसर केलीनंद घसावै |
ता द्रव्य ते पूजत जिनवर को भव आताप मिटावै ॥ पर्व०॥

ॐ ह्रीं सुगंध दशमी व्रतोद्योतनाय भवताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा |

 

चन्द्र किरण सम अक्षत उज्वल कमल शाँलि के ल्यावैं  |
जिन चरणाग्रज पुंज करत ही तुरत अक्षय पद पावै ॥पर्व०॥

ॐ ह्रीं सुगंध दशमी व्रतोद्योतनाय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।



पारिजात संतान कल्पतरु पुष्प सुगंध घनेरे ।
कमल जिनेश्वर पद पूज चहोडे बाण मनोज उड़ेरे ॥पर्व०॥

ॐ ह्रीं सुगंध दशमी व्रतोद्योतनाय कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।



खाजा फैनी मोदक चन्द्रि कसूर ही घृत बनावै ।
मिष्ट रसन करि पूरित जिन पद चहोड़ क्षुधादि नशावै ॥पर्व०॥

ॐ ह्रीं सुगंध दशमी व्रतोद्योतनाय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।

 

दीप रतन मय कर्पूरादिक सूर्यकिरण से ल्यावैं।
जिन चरणन पर बारे आर्थिक ज्ञान अनन्त हो जावे ॥पर्व०॥

ॐ ह्रीं सुगंध दशमी व्रतोद्योतनाय मोहांधकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।

 

अगर तगर मलियागिर चन्दन धूप दशांग मंगावै ।
स्वर्ण धूपायन संग हुतासन खेये विधिजर जावै ॥पर्व०॥

ॐ ह्रीं सुगंध दशमी व्रतोद्योतनाय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।

 

फल सुलाय के आम्र सुगम सु नाशा नेत्र सुहावे ।
जिनवर पद पूजत फल देते मुकतिवधुवर थापै ॥पर्व०॥

ॐ ह्रीं सुगंध दशमी व्रतोद्योतनाय मोक्षफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।

 

क्रमल सुगंधित नीर सु चन्दन अक्षत पुष्प मिलावै |
चरु अरु दीप धूप फल सेती सुवरण थाल भरावै ॥
नृत्य गान वादित्र बजावै अर्घ जिनेन्द्र चढ़ाई ।
सुगंध देह तीर्थंकर पद की पावै शिव खुखदाई ॥

ॐ ह्रीं सुगंध दशमी व्रतोद्योतनाय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।

 

जयमाला

(दोहा)

पर्व सुगंध दशै तनो, अति महिमा को धाम।
ताकि जयमाला कहूं, मुक्ति मिलन को काम॥


(चाल)

सुगंध दशमी जिनपूजस्याँ, खेयकरि धूप सुगंध ।
मुक्ति कमल मुखभ्रमरहोय, सुँघत निशदिन गंध ॥ टेक |

भाद्रव सुदि दशमी विषै सब इन्द्रादिक देव |
सुर सुरांगना सैन्य जुत, आवत है स्वयमेव ॥ सुगंध०॥

ताकी विधि वर्णन करूं, करके जिनपद सेव |
भक्ति थकी वाचाल है, पूजत सुख स्वयमेव ॥ सुगध०॥

चतुरनिकाय सुराधिपा, प्रति इन्द्र जु सहेत ।
ध्वज बादित्र जु अग्रकरि, जिनगुन गान करेह सुगंध दशम०

मध्य लोक में आय के, अकृतिम जिनगेह ।
तहां आय पूजन करै, जिन गुन गान करैह ॥ सुगंध दशम०

विविध सुगंध मिलाय कै, खेवत धूप सुगंध ।
ताको धूम्र जुअलि समै, नभ जु करै संबन्ध ॥ सुगंध दशम०

धूम धूम मिस करम की, मानू घूप उडंत ।
द्शों दिशा भरमत फिरै, पार न कहूँ दीसंत सुगंध. दशम०॥

जय जय रव देवन तनै, गुन गुन गान करंत ।
शब्दातम प्रृथ्वी भई, मानू हरषत अंग ॥ सुगंध दशम०

नरनारी अति हरषतैं, उत्सव अति ही कराय ।
व्राभूषण धारि तन, धूप सुगन्ध बनाय सुगंध दशम०॥

जिन मंदिर में धूप घट, खेवत धूप जु जाय ।
सुगन्ध दशै का पर्व की, वर्णन की बुधि नाय सुगंध दशम०॥

'चन्द्सरूप' जु कहत है कोलो कहूँ बनाय ॥
यहाँ हूँ मझारि सब, अर ग्रामादिक माहिं सुगंध दशम०॥

जो यो दशमी व्रत करे, मनवच तन कर शुद्ध |
सकल कर्म को नाश करि, होय केवली बुद्ध सुगंध दशम०॥

 

ॐ ह्रीं श्री सुगंध दशमी व्रतोद्योतनाय मध्यलोक संबंधी सकल जिन विम्ब समूहेभ्यो आवागमन निवारणाय जयमाला-पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा |


॥ इत्याशिर्वाद : पुष्पांजली क्षपेत्‌ ॥

 

 

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by Jaimini at 10:39 AM, Sep 18, 2023

It is not available in pdf format. It is available only on jainsaar website.

by Admin at 09:39 PM, Sep 18, 2023