Posted on 07-May-2020 09:34 PM
इह विधि ठाडो होए के, प्रथम पढ़े जो पाठ |
धन्य जिनेश्वर देव तुम, नाशे करम जु आठ ||1||
अनंत चतुष्टय के धनी, तुम ही हो सिरताज |
मुक्ति-वधु के कन्ठ तुम, तीन भुवन के राज ||2||
तिहूँ जग की पीड़ा हरन, भवदधि शोषणहार |
ज्ञायक हो तुम विश्व के, शिवसुख के करतार ||3||
हरता अघ अंधियार के, करता धर्म प्रकाश |
थिरता-पद दातार हो, धरता निज गुण रास ||4||
धर्मामृत उर जलधि सों, ज्ञानभानु तुम रूप |
तुमरे चरण सरोज को, नावत तिहूँजग भूप ||5||
मैं वन्दौं जिन देव को, करि अति निर्मल भाव |
कर्म-बंध के छेदने, और न कुछ उपाव ||6||
भविजन को भव-कूप तैं, तुम ही काढनहार |
दीन-दयाल, अनाथ-पति, आतम गुण भंडार ||7||
चिदानन्द निर्मल कियो, धोय करम-रज मैल |
सरल करी या जगत में, भविजन को शिवगैल ||8||
तुम पद-पंकज पूजतैं, विघ्न-रोग टर जाय |
शत्रु मित्रता को धरें, विष निरविषता थाए ||9||
चक्री खगधर इंद्र पद, मिलें आप ते आप |
अनुक्रम करि शिवपद लहैं, नेम सकल हनि पाप ||10||
तुम बिन मैं व्याकुल भयो, जैसे जल बिन मीन |
जन्म-जरा मोहि हरो, करो मोहि स्वाधीन ||11||
पतित भुत पावन किये, गिनती कौन करेव |
अंजन से तारे कुधी जय जय जय जिनदेव ||12||
थकी नाव भवदधि विशैं, तुम प्रभु पार करेव |
खेवटिया तुम हो प्रभु, जय जय जय जिनदेव ||13||
राग सहित जग में रुल्यो, मिले सरागी देव |
वीतराग भेट्यों अबें, मेटो राग कुटेव ||14||
कित निगोद कित नारकी, किट तिर्यंच अज्ञान |
आज धन्य मानुष भयो, पायो जिनवर थान ||15||
तुमकों पूजें सुरपति, अहिपति नरपति देव |
धन्य भाग्य मेरो भयो, करन लग्यो तुम सेव ||16||
अशरण के तुम शरण हो, निराधार आधार |
मैं डूबत भव सिन्धु में, खेव लगाओ पार ||17||
इन्द्रादिक गणपति थके, कर विनती भगवान |
अपनो विरद निहारिकैं, कीजे आप समान ||18||
तुमरी नेक सुदृष्टि तैं, जग उतरत है पार |
हाँ हाँ डूब्यों जात हों, नेक निहार निकार ||19||
जो मैं कहूं और सौं, तो न मिटे उरभार |
मेरी तो तोसों बनी, यातैं करो पुकार ||20||
वन्दों पाचों परमगुरु, सुरगुरु वन्दत जास |
विघ्नहरन मंगलकरन, पूरन परम प्रकाश ||21||
चौबीसों जिनपद नमों, नमों शारदा माय |
शिवमग साधक साधू नमि, रच्यो पाठ सुखदाय ||22||
मंगल मूर्ति परम पद, पंच धरो नित ध्यान |
हरो अमंगल विश्व का, मंगलमय भगवान ||23||
मंगल जिनवर पद नमों, मंगल अर्हत देव |
मंगलकारी सिद्ध पद, सो वंदो स्वयमेव ||24||
मंगल आचारज मुनि, मंगल गुरु उवझाय |
सर्व साधू मंगल करो, वंदो मन-वच-काय ||25||
मंगल सरस्वती मात का, मंगल जिनवर धर्म |
मंगलमाय मंगल करो, हरो असाता कर्म ||26||
या विधि मंगल से, सदा जग में मंगल होत |
मंगल भक्त यह भव सागर दृढ पोत ||27||
देव शास्त्र गुरु पूजा की लिंक -
https://www.jainsaar.com/jain-pujan/dev-shaastra-guru-poojan-pratham-dev
Good
by Rajesh Nanaji Mandaogade at 06:41 PM, Oct 31, 2024